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________________ ३८४ आवासएण हीणो पब्भट्ठो होदि चरणदो समणो । पुव्वुत्तकमेण पुणो तम्हा आवासयं कुज्जा ।। १४८ ।। नियमसार आवश्यकेन हीनः प्रभ्रष्टो भवति चरणत: श्रमणः । पूर्वोक्तक्रमेण पुनः तस्मादावश्यकं कुर्यात् । । १४८ । । अत्र शुद्धोपयोगाभिमुखस्य शिक्षणमुक्तम् । अत्र व्यवहारनयेनापि समतास्तुतिवंदनाप्रत्याख्यानादिषडावश्यकपरिहीणः श्रमणश्चारित्रपरिभ्रष्ट इति यावत्, शुद्धनिश्चयेन परमाध्यात्मभाषयोक्तनिर्विकल्पसमाधिस्वरूपपरमावश्यकक्रियापरिहीणश्रमणो निश्चयचारित्रभ्रष्ट यदि इस जीव को संसार के दुखों को नाश करनेवाला और अपने आत्मा में नियत चारित्र हो तो; वह चारित्र मुक्तिलक्ष्मीरूपी सुन्दरी के समागम से उत्पन्न होनेवाले सुख का उच्चस्तरीय कारण होता है। ऐसा जानकर जो मुनिराज अनघ (निर्दोष) समयसार (शुद्धात्मा) को जानते हैं; उसमें ही जमते रमते हैं; बाह्य क्रियाकाण्ड से मुक्त वे मुनिराज पापरूपी भयंकर जंगल को जलाने के लिए दावाग्नि के समान हैं। इसप्रकार इस छन्द में यह कहा गया है कि आत्मा के आश्रय से उत्पन्न होनेवाला चारित्र ही मुक्ति का कारण । बाह्य क्रियाकाण्ड से विरक्त और इसमें अनुरक्त मुनिराज ही मिथ्यात्वादि को नाश करनेवाले हैं ।। २५५ ।। विगत में शुद्ध निश्चय आवश्यक की प्राप्ति के उपाय का स्वरूप बताया गया है और अब इस गाथा में निश्चय आवश्यक करने की प्रेरणा दे रहे हैं । गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र ( हरिगीत ) जो श्रमण आवश्यक रहित चारित्र से अति भ्रष्ट वे । पूर्वोक्त क्रम से इसलिए तुम नित्य आवश्यक करो ।। १४८।। आवश्यक से रहित श्रमण चारित्र से भ्रष्ट होते हैं; इसलिए पहले बताई गई विधि से आवश्यक अवश्य करना चाहिए। इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज श्रीपद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैंह्न “यहाँ शुद्धोपयोग के सन्मुख जीव को शिक्षा दी गई है। इस लोक में जब व्यवहारनय से भी समता, स्तुति, वन्दना, प्रत्याख्यान आदि षट् आवश्यकों से रहित श्रमण चारित्र से भ्रष्ट है ऐसा कहा जाता है तो फिर शुद्ध निश्चयनय से परम-अध्यात्म भाषा में निर्विकल्प समाधि स्वरूप परम आवश्यक क्रिया से रहित निश्चयचारित्र से भ्रष्ट श्रमण तो चारित्र भ्रष्ट हैं ही ह्न ऐसा अर्थ है ।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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