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________________ २२२ नियमसार पडिकमणणामधेये सुत्ते जह वण्णिदं पडिक्कमणं । तह णच्चा जो भावइ तस्स तदा होदि पडिक्कमणं ।।९४।। प्रतिक्रमणनामधेये सूत्रे यथा वर्णितं प्रतिक्रमणम् । तथा ज्ञात्वा यो भावयति तस्य तदा भवति प्रतिक्रमणम् ।।१४।। अत्र व्यवहारप्रतिक्रमणस्य सफलत्वमुक्तम् । यथा हि निर्यापकाचार्यैः समस्तागमसारासारविचारचारुचातुर्यगुणकदम्बकैः प्रतिक्रमणाभिधानसूत्रे द्रव्यश्रुतरूपे व्यावर्णितमतिविस्तरेण प्रतिक्रमणं, तथा ज्ञात्वा जिननीतिमलंघयन् चारुचरित्रमूर्तिः सकलसंयमभावनां करोति, तस्य महामुनेर्बाह्यप्रपंचविमुखस्य पंचेन्द्रियप्रसरवर्जितगात्रमात्रपरिग्रहस्य परमगुरुचरणस्मरणासक्तचित्तस्य तदा प्रतिक्रमणं भवतीति । इस कलश में अत्यन्त स्पष्टरूप से यह कहा गया है कि जिन योगियों के चित्तरूपी चैत्यालय में शुक्लध्यानरूपी दीपक जलता है; उस योगी के शुद्धात्मा का प्रत्यक्ष अनुभव निरन्तर रहता ही है। इसमें रंचमात्र भी संदेह की गुंजाइश नहीं है ।।१२४।। परमार्थप्रतिक्रमण अधिकार की इस अन्तिम गाथा में व्यवहारप्रतिक्रमण की चर्चा करते हैं। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न ( हरिगीत ) प्रतिक्रमण नामक सूत्र में वर्णन किया जिसरूप में। प्रतिक्रमण होता उसे जो भावे उसे उस रूप में||९४|| प्रतिक्रमण नामक सूत्र में प्रतिक्रमण का स्वरूप जिसप्रकार बताया गया है, उसे जब मुनिराज तदनुसार भाते हैं; तब उन्हें प्रतिक्रमण होता है। इस गाथा का भाव टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं ह्न “यहाँ व्यवहारप्रतिक्रमण की सफलता की बात की है। समस्त आगम के सार और असार का विचार करने में अति चतुर तथा अनेक गुणों के धारक निर्यापकाचार्यों ने जिसप्रकार द्रव्यश्रुतरूप प्रतिक्रमण नामक सूत्र में प्रतिक्रमण का अति विस्तृत वर्णन किया है; तदनुसार जानकर जिननीति का उल्लंघन न करते हुए ये चारु चारित्र की मूर्तिरूप जो महामुनिराज सकल संयम की भावना करते हैं, बाह्य प्रपंचों से विमुख, पंचेन्द्रिय विस्तार से रहित, देहमात्र परिग्रहधारी और परमगुरु के चरणों में स्मरण में आसक्त चित्तवाले उन मुनिराजों को प्रतिक्रमण होता है।" इसप्रकार इस गाथा में यही कहा गया है कि निर्यापकाचार्यों द्वारा द्रव्यश्रत में समागत प्रतिक्रमण सूत्र में निरूपित प्रतिक्रमण के स्वरूप को जानकर जिननीति का उल्लंघन न करने वाले और संयम के धारण करने की भावना रखनेवाले मुनिराजों के प्रतिक्रमण होता है ।।९४।।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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