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________________ व्यवहारचारित्राधिकार १८३ व्यवहारचारित्राधिकारव्याख्यानानोपसंहारनिश्चयचारित्रसूचनोपन्यासोऽयम् । इत्थं भूतायां प्रागुक्तपंचमहाव्रतपंचसमितिनिश्चयव्यवहारत्रिगुप्तिपंचपरमेष्ठिध्यानसंयुक्तायाम् अतिप्रशस्तशुभभावनायां व्यवहारनयाभिप्रायेण परमचारित्रं भवति, वक्ष्यमाणपंचमाधिकारे परमपंचमभावनिरतपंचमगतिहेतुभूतशुद्धनिश्चयनयात्मपरमचारित्रं द्रष्टव्यं भवतीति । तथा चोक्तं मार्गप्रकाशे ह्र ( वंशस्थ ) कुसूलगर्भस्थितबीजसोदरं भवेद्विना येन सुदृष्टिबोधनम् । तदेव देवासुरमानवस्तुतं नमामि जैनं चरणं पुनः पुनः ।। ३६ ।। १ इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं ह्र "यह व्यवहारचारित्राधिकार के व्याख्यान का उपसंहार और निश्चय चारित्राधिकार आरंभ करने की सूचना का कथन है । व्यवहारनय के अभिप्राय से पूर्वोक्त पाँच महाव्रत, पाँच समितियाँ और निश्चय-व्यवहाररूप तीन गुप्तियाँ तथा पंचपरमेष्ठी के ध्यान से संयुक्त अतिप्रशस्त शुभ भावना परमचारित्र है । अब आगे कहे जानेवाले पाँचवें अधिकार में परम पंचमभाव में लीन, पंचमगति के हेतुभूत, शुद्धनिश्चयनयात्मक परमचारित्र देखने योग्य है ।" यह गाथा व्यवहारचारित्र अधिकार के समापन एवं परमार्थप्रतिक्रमण अधिकार के आरंभ के संधिकाल की गाथा है। इसमें मात्र यह सूचना दी गई है कि पंच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति और पंच परमेष्ठी का स्वरूप स्पष्ट करनेवाला व्यवहारचारित्राधिकार समाप्त हो रहा है और आगे के अधिकारों में जो भी निरूपण होगा, वह सब निश्चयचारित्र की मुख्यता से होगा ।। ७६ ।। इसके बाद टीकाकार मुनिराज 'तथा मार्गप्रकाश नामक शास्त्र में भी कहा गया है' ह्र ऐसा कहकर एक छन्द प्रस्तुत करते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न ( हरिगीत ) कोठार के भीतर पड़े ज्यों बीज उग सकते नहीं । बस उसतरह चारित्र बिन दृग-ज्ञान फल सकते नहीं । असुर मानव देव भी थुति करें जिस चारित्र की । मैं करूँ वंदन नित्य बारंबार उस चारित्र को ||३६|| जिस चारित्र के बिना सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान कोठार में पड़े हुए बीज के समान है; देव, असुर और मानवों से स्तवन किये गये उस चारित्र को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ । १. मार्गप्रकाश, श्लोक संख्या अनुपलब्ध है।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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