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________________ जीव अधिकार (पृथ्वी) क्वचिव्रजति कामिनीरतिसमुत्थसौख्यंजनः। क्वचिद् द्रविणरक्षणे मतिमिमां च चक्रे पुनः ।। क्वचिज्जिनवरस्य मार्गमुपलभ्य यः पण्डितो। निजात्मनि रतो भवेद व्रजति मुक्तिमतां हि सः॥९॥ जिस छन्द में उक्त चर्चा की गई है, उसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न (रोला) कभी कामिनी रति सुख में यह रत रहता है। कभी संपती की रक्षा में उलझा रहता। किन्तु जो पण्डितजन जिनपथ पा जाते हैं। ___ हो जाते वे मुक्त आत्मा में रत होकर||९|| मनुष्य कभी तो कामिनी के प्रति रति से उत्पन्न होनेवाले सुख की ओर जाता है तो कभी धन की रक्षा में बुद्धि लगा देता है; परन्तु जो पण्डित लोग कभी जिनदेव के मार्ग को प्राप्त करके निज आत्मा में रत हो जाते हैं: वेमक्ति को प्राप्त करते हैं।। इसप्रकार इस छन्द में यही कहा गया है कि कंचन और कामिनी में उलझे लोग इस उत्कृष्ट मार्ग को प्राप्त नहीं कर सकते। इस मार्ग को पानेवाले तो पण्डितजन ही हैं; जो इस मार्ग को पाकर निज आत्मा की आराधना करते हैं और मुक्ति को प्राप्त करते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव की दृष्टि में पण्डित शब्द कितना महान है। उनकी दृष्टि में जो जिनवर के मार्ग को प्राप्त कर अपने आत्मा की आराधना करते हैं, वे ही पण्डित हैं। जिन लोगों को पण्डित शब्द से ही एलर्जी है; उन्हें मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव के उक्त कथन पर ध्यान देना चाहिए। यद्यपि यह सत्य है कि पण्डित नामधारी कुछ लोगों ने अपने जीवन और व्यवहार से इस महान शब्द को बदनाम कर दिया है; तथापि ऐसा तो सभी शब्दों के साथ होता रहा है। कुछ मुनिराजों ने अपने व्यवहार से यदि मुनिधर्म को कलंकित कर दिया हो तो क्या सच्चे मुनिराज स्वयं को मुनिराज कहलाने में लज्जित होंगे? यदि नहीं तो हमें भी अपने सत्कर्मों, सद् व्यवहार और सच्चे आत्मार्थीपने से अपने आत्मकल्याण के साथ-साथ इस महान शब्द की प्रतिष्ठा को भी पुनर्स्थापित करना चाहिए । इस महान शब्द के प्रति अरुचि प्रदर्शित करने या इससे घृणा करने से पण्डित टोडरमल
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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