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________________ अपनी खोज उन्हें एकाकार देखकर भी अपनी आदत के अनुसार पुलिसवाला घुड़ककर पूछता है- "क्या यही है तेरी माँ ?" क्या अब भी यह पूछने की आवश्यकता थी? उनके इस भावुक सम्मिलन से क्या यह सहज ही स्पष्ट नहीं हो गया था कि ये ही वे बिछुड़े हुए माँ-बेटे हैं, जिनकी एक-दूसरे को तलाश थी। जो इस सम्मिलन के अद्भुत दृश्य को देखकर भी न समझ पाये, उससे कुछ कहने से भी क्या होगा? उसीप्रकार आत्मानुभवी पुरुष की दशा देखकर भी जो यह न समझ पाये कि यह आत्मानुभवी है, उसे बताने से भी क्या होनेवाला है? __ पुलिसवालों की वृत्ति और प्रवृत्ति से तो आप परिचित ही हैं, उनसे उलझना ठीक नहीं है; क्योंकि यह बता देने पर भी कि यही मेरी माँ है, वे यह भी कह सकते हैं कि क्या प्रमाण है इसका? जैसा कि लोक में देखा जाता है कि खोई हुई वस्तु पुलिस कस्टडी में रखी जाती है, केस चलता है, अनेक वस्तुओं में मिलाकर पहिचानना होता है, तब भी मिले तो मिले, न मिले तो न मिले। __ मेरी यह घड़ी यहीं पर रह जावे और इसे कोई पुलिस में जमा करा दे तो समझना कि अब हमें इसका मिलना बहुत कठिन है । केस चलेगा, उसीप्रकार की अनेक घड़ियों में मिलाकर मुझ से पहिचान कराई जावेगी। मैं आपसे ही पूछता हूँ कि एक कम्पनी की एक सी घड़ियों में क्या आप अपनी घड़ी पहिचान सकेंगे? नहीं तो फिर समझ लीजिए कि मेरी घड़ी मिलना कितना दुर्लभ है? ___ अत: पुलिसवालों से उलझना ठीक नहीं है, वे जो पूछे चुपचाप उत्तर देते जावो, इसी में भलाई है; क्योंकि यदि उन्होने माँ और बेटे दोनों को ही पुलिस कस्टडी में रख दिया तो क्या होगा? यह जगत भी पुलिसवालों से कम थोड़े ही है, इससे उलझना भी ठीक नहीं है; जगत के लोग यह भी तो पूछ सकते हैं कि क्या प्रमाण
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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