SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपनी खोज ___ उनकी बातें सुनकर बालक सोचता है कि जिस नाम से मैं माँ को रोजाना बुलाता हूँ, क्या वह नाम, नाम ही नहीं है? मम्मी कहकर जब भी बुलाता हूँ, माँ हाजिर हो जाती है। फिर भी ये लोग कहते हैं कि मैं माँ का नाम भी नहीं जानता। ___ बालक यह सोच ही रहा था कि पुलिसवाला फिर पूछने लगता है- "तेरी माँ मोटी है या पतली है, गोरी या काली, लम्बी या ठिगनी?" बालक ने तो कभी सोचा भी न था कि माताएँ भी छह प्रकार की होती हैं, उसने तो अपनी माँ को कभी इन रूपों में देखा ही न था। उसने तो माँ का माँपन ही देखा था, रूप-रंग नहीं, कद भी नहीं। वह कैसे वताये कि उसकी माँ गोरी है या काली, लम्बी है या ठिगनी, मोटी या पतली है? ये तो सापेक्ष स्थितियाँ हैं। दूसरों से तुलना करने पर ही किसी गोरा या काला कहा जा सकता है, लम्बा या ठिगना कहा जा सकता है, मोटा या पतला कहा जा सकता है। __ मैं आपसे ही पूछता हूँ कि मैं गोरा हूँ या काला, लम्बा हूँ या ठिगना, मोटा हूँ या पतला? ___ मैं तो जैसा हूँ, वैसा ही हूँ; न गोरा हूँ, न काला हूँ; न लम्बा हूँ, न ठिगना हूँ और न मोटा ही हूँ, न पतला ही। मेरी बगल में एक अंग्रेज को खड़ा कर दें तो उसकी अपेक्षा मुझे काला कहा जा सकता है, किसी अफ्रीकन को खड़ा कर दें तो गोरा भी कहा जा सकता है; किसी ठिगने आदमी को खड़ा कर दो तो लम्बा कहा जा सकता है और मुझसे भी लम्बे आदमी को खड़ा कर दो तो ठिगना भी कहा जा सकता है। इसीप्रकार किसी मोटे आदमी को खड़ा कर दो तो मुझे पतला कहा
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy