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________________ अपने में अपनापन ७९ सेठानी के इस व्यवहार का एकमात्र कारण बेटे में अपनेपन का अभाव ही तो है। वैसे तो वह बेटा उसी का है, पर उसमें अपनापन नहीं होने से उसके प्रति व्यवहार बदलता नहीं है। __ अपना होने से क्या होता है? जबतक अपनापन न हो, तबतक अपने होने का कोई लाभ नहीं मिलता। यहाँ अपने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण अपनापन है। भाई, यही हालत हमारे भगवान आत्मा की हो रही है। यद्यपि वह अपना ही है, अपना ही क्या, अपन स्वयं ही भगवान आत्मा हैं, पर भगवान आत्मा में अपनापन नहीं होने से उसकी अनन्त उपेक्षा हो रही है, उसके साथ पराये बेटे जैसा व्यवहार हो रहा है। वह अपने ही घर में नौकर बन कर रह गया है। __यही कारण है कि आत्मा की सुध-बुध लेने की अनन्त प्रेरणायें भी कारगर नहीं हो रही हैं, अपनापन आये बिना कारगर होंगी भी नहीं। इसलिए जैसे भी संभव हो, अपने आत्मा में अपनापन स्थापित करना ही एकमात्र कर्तव्य है, धर्म है। इसीप्रकार चलते-चलते वह लड़का अठारह वर्ष का हो गया। एक दिन इस बात का कोई ठोस प्रणाम उपलब्ध हो गया कि वह लड़का उन्हीं सेठजी का है। उक्त सेठानी को भी यह विश्वास हो गया कि वह सचमुच उसका ही लाड़ला बेटा है। अब आप बताइये- अब क्या होगा? होगा क्या? वह सेठानी जोर-जोर से रोने लगी। सेठजी ने समझाते हुए कहा___ "अब क्यों रोती है? अब तो हँसने का समय आ गया है, अब तो तुझे तेरा पुत्र मिल गया है।"
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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