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________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन इसीप्रकार यदि कोई व्यक्ति आत्मोपलब्धि के लिए ध्यान भी मन्दिर में विराजमान भगवान का ही करता रहे तो उसे भी विकल्पों की ही उत्पत्ति होती रहेगी, निर्विकल्प आत्मानुभूति कभी नहीं होगी; क्योंकि निर्विकल्प आत्मानुभूति निज भगवान आत्मा के आश्रय से ही होती है । निर्विकल्प आत्मानुभूति के विना सम्यग्दर्शन- ज्ञान - चारित्र की उत्पत्ति भी नहीं होगी । -इसप्रकार उसे सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र की एकतारूप मोक्षमार्ग का आरंभ ही नहीं होगा। - ५६ जिसप्रकार वह रिक्शावाला बालक रिक्शा चलाते हुए भी करोड़पति है; उसीप्रकार दीन-हीन हालत में होने पर भी हम सभी स्वभाव से ज्ञानानन्दस्वभावी भगवान हैं, कारण परमात्मा हैं - यह जानना - मानना उचित ही है । इस सन्दर्भ में मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि भारत में अभी किसका राज है ? कांग्रेस का " 44 'क्या कहा, कांग्रेस का ? नहीं भाई ! यह ठीक नहीं है; कांग्रेस तो एक पार्टी है, भारत में राज तो जनता-जनार्दन का है; क्योंकि जनता जिसे चुनती है, वही भारत का शासन चलाता है; अत: राज तो जनताजनार्दन का ही है । " " उक्त सन्दर्भ में जब हम जनता को जनार्दन (भगवान) कहते हैं तो कोई नहीं कहता कि जनता तो जनता है, वह जनार्दन अर्थात् भगवान कैसे हो सकती है? पर जब तात्त्विक चर्चा में यह कहा जाता है कि हम सभी भगवान हैं तो हमारे चित्त में अनेकप्रकार की शंकाएँआशंकाएँ खड़ी हो जाती है, पर भाई गहराई से विचार करें तो स्वभाव सेतो प्रत्येक आत्मा परमात्मा ही है- इसमें शंका- आशंकाओं को कोई स्थान नहीं है ।
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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