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________________ एकता की अपील चर्चा सफल होती है। इसके लिए पूर्व तैयारी अत्यन्त आवश्यक है। आप या हम तभी तो कोई बात स्वीकार कर सकते हैं, जब उस बात को अपने-अपने पक्ष की जनता को भी स्वीकृत करा सकें। यदि अपने पक्ष की जनता को स्वीकार न करा सके तो हमारे और आपके स्वीकार करने मात्र से क्या होगा ? १०५ सामाजिक एकता के लिए विशाल दृष्टिकोण से कार्य करना होगा और ऐसा समाधान खोजना होगा, जो संबंधित सभी व्यक्तियों को स्वीकार हो सके, अन्यथा एकता सम्भव नहीं हो सकती । समझौता का रास्ता अत्यन्त आवश्यक और उपयोगी होते हुए भी सहज व सरल नहीं होता; इसमें हमारी बुद्धि, क्षमता, सामाजिक पकड़, धैर्य - सभी कसौटी पर चढ़ जाते हैं। फिर भी यदि दोनों पक्ष एक-दूसरे की कठिनाइयाँ समझें और सच्चे दिल से रास्ता खोजें तो मार्ग मिलता ही है। एकबार एकसाथ मिलना-बैठना आरम्भ हो जाय तो बहुत-सी समस्याएँ तो अपने-आप समाप्त हो जाती हैं। एक बात यह भी तो है कि हम और आप ही तो सबकुछ नहीं हैं, आपके साथी - सहयोगी भी हैं और हमारे भी साथी - सहयोगी हैं। जबतक उनसे विचार-विमर्श कर पहल न की जावे, तबतक कुछ भी सम्भव नहीं । इस सब के लिए वातावरण में भी कुछ नरमी तो आनी ही चाहिए। बिना नरमी के जब एक साथ उठना-बैठना ही सम्भव नहीं है तो एकता का रास्ता कैसे निकल सकता है? आप जरा अपने पक्ष में नरमी का वातावरण बनाइये, जिससे संवाद की स्थिति बन सके । हम स्वयं इस दिशा में वर्षों से सक्रिय हैं, इस दिशा में हमने अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, अनेक कठिनाइयों के रहते हुए भी उनका सफल क्रियान्वयन भी किया है । हमारे उक्त प्रयत्नों से सभी समाज भली-भाँति परिचित है; उनका उल्लेख करना न तो आवश्यक ही है और न उचित ही है। यद्यपि हमारे उक्त प्रयत्नों के सुपरिणाम आ रहे हैं, तथापि जन-मानस
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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