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________________ मोक्षमार्गप्रकाशक का सार यद्यपि यह सत्य है कि कमठ के जीव ने उन पर उपसर्ग किया था और धरणेन्द्र - पद्मावती को उपसर्ग दूर करने का भाव आया था; तथापि यह ठीक नहीं है कि उक्त उपसर्ग से उन पर कोई बड़ा संकट आ गया था और यदि धरणेन्द्र-पद्मावती न आते तो न मालूम क्या हो जाता ? क्योंकि वे तो अपने में पूर्ण सुरक्षित थे ही; उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए अन्य के सहयोग की रंचमात्र भी आवश्यकता नहीं थी । १३६ शास्त्रों में आता है कि ह्न कमठे धरणेन्द्रे च सोचितं कर्म कुर्वती । प्रभु तुल्य: मनोवृत्तिः पार्श्वनाथः नमोस्तु ते ।। कमठ ने अपनी कषाय के अनुसार उपसर्ग और धरणेन्द्र ने अपने भक्तिभाव के अनुसार उसके निवारण के प्रयास किये। यह कार्य उनके राग-द्वेषानुसार उचित ही थे; क्योंकि द्वेषवालों को उपसर्ग और रागवालों को उसके निवारण का भाव आना उचित ही है। किन्तु वीतराग धर्म की आराधना करनेवाले पार्श्वनाथ मुनिराज के चित्त में दोनों के प्रति समान भाव था, समता भाव था; न तो उन्हें कमठ से द्वेष था और न धरणेन्द्र से राग; वे तो पूर्ण वीतरागता की ओर तेजी से बढ़ रहे थे। यही कारण है कि हम सब पार्श्वनाथ को नमस्कार करते हैं। यदि वे कमठ से द्वेष और धरणेन्द्र से राग करते तो फिर हममें और उनमें अन्तर ही क्या रहता, फिर हम उन्हें पूजते भी क्यों ? इस छन्द में कमठ और धरणेन्द्र की चर्चा तो है; पर पद्मावती के नाम का उल्लेख नहीं है। इससे भी यही प्रतीत होता है कि उपसर्ग निवारण में धरणेन्द्र ही प्रमुख थे। फिर भी न मालूम क्यों उनकी उपेक्षा हुई ? यह प्रश्न चित्त को आन्दोलित करता ही है। जब लोग ऐसा बोलते हैं कि यदि धरणेन्द्र- पद्मावती समय पर नहीं पहुँचते तो न मालूम क्या हो जाता ? तब मुझे बड़ा अटपटा लगता है। अरे, भाई ! यदि धरणेन्द्र-पद्मावती नहीं पहुँच पाते तो क्या होता का नौवाँ प्रवचन १३७ प्रश्न ही कहाँ खड़ा होता है; क्योंकि वही होता; जो होना था, हुआ था। उन्हें केवलज्ञान होने का समय आ गया था, वे उसे प्राप्त करने के अभूतपूर्व पुरुषार्थ में संलग्न थे, पाँचों ही समवाय केवलज्ञान होने के थे सो केवलज्ञान हो गया। यह उपसर्ग तो उसमें निमित्त भी नहीं था; क्योंकि उसमें अंतरंग निमित्त तो चार घातियों का क्षय था, अभाव था । यह बात तो ऐसी लगती है कि जैसे एक भारतकेसरी नामी पहलवान बाजार में जा रहा था कि सामने से एक आठ वर्ष का बालक आया और उस बालक ने उस पहलवान की पिटाई आरंभ कर दी; इतने में एक दस वर्ष का बालक आया और उसने उसे बचा लिया। यदि दस वर्ष का बालक नहीं आता और बचाता भी नहीं तो न मालूम आज क्या हो जाता ? जब मैं ऐसा कह रहा था तो एक भाई बोले ह्र अरे, भाई ! आपको झूठ बोलना भी ढंग से नहीं आता। इतना बड़ा सफेद झूठ। क्या आठ वर्ष का बालक किसी भारतकेसरी पहलवान को मार सकता है, बाल हठ के कारण कुछ हाथ-पैर चलाये भी तो क्या बिगड़ता है इतने बड़े पहलवान का ? आठ वर्ष का बालक मार रहा था और दस वर्ष के बालक ने बचा लिया, अन्यथा न मालूम क्या हो जाता ? ह्न यह बात जिसप्रकार विश्वसनीय नहीं लगती; उसीप्रकार कमठ का जीव मार रहा था और धरणेन्द्र - पद्मावती ने बचा लिया, अन्यथा न जाने क्या हो जाता ह्न यह बात भी हृदय में आसानी से नहीं उतरती । मैं आपसे ही पूछता हूँ ह्र क्या हो जाता ? क्या उस पहलवान के हाथ-पैर टूट जाते, उसे अस्पताल जाना पड़ता, क्या उसकी मृत्यु भी हो सकती थी ? अरे, भाई ! कुछ नहीं होता। उस पहलवान का तो कुछ नहीं होता, पर उस बालक के हाथ में दर्द अवश्य हो जाता, हाथ में मोच भी आ सकती थी। हो सकता है कि उस बालक को अस्पताल ले जाना पड़ता ।
SR No.009458
Book TitleMoksh Marg Prakashak ka Sar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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