SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुत कुछ समझाने पर भी वह सेठानी यह मानने को तैयार ही नहीं होती कि बच्चे के साथ कुछ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। क्या है-इस सबका कारण? एकमात्र अपनेपन का अभाव। कहते हैं-मातायें बहुत अच्छी होती हैं। होती होंगी, पर मात्र अपने बच्चों के लिए, पराये बच्चों के साथ उनका व्यवहार देखकर तो शर्म से माथा झुक जाता है। यह सभी माताओं की बात नहीं है; पर जो ऐसी हैं, उन्हें अपने व्यवहार पर एक बार अवश्य विचार करना चाहिए। एकबार एक दूसरी पड़ोसिन ने बड़े ही संकोच के साथ कहा "अम्माजी ! मेरे मन में एक बात बहुत दिनों से आ रही है, आप नाराज न हों तो कहूँ? बात यह है कि यह नौकर शकल से और अकल से सब बातों में अपना पप्पू जैसा ही लगता है । वैसा ही गोरा-भूरा, वैसे ही धुंघराले बाल; सबकुछ वैसा ही तो है, कुछ भी तो अन्तर नहीं और यदि आज वह होता तो होता भी इतना ही बड़ा।" उसकी बात सुनकर सेठानीजी उल्लासित हो उठीं, उनके लाडले बेटे की चर्चा जो हो रही थी, कहने लगीं-"लगता तो मुझे भी ऐसा ही है। इसे देखकर मुझे अपने बेटे की और अधिक याद आ जाती है। ऐसा लगता | ३८ मैं स्वयं भगवान हूँ|
SR No.009457
Book TitleMain Swayam Bhagawan Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy