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________________ भी असीम है, अनन्त है। इससे सिद्ध होता है कि अपनापन ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। आजतक इस आत्मा ने देहादि पर-पदार्थों में ही अपनापन मान रखा है। अतः उन्हीं की सेवा में सम्पूर्णतः समर्पित है। निज भगवान आत्मा में एक क्षण को भी अपनापन नहीं आया है। यही कारण है कि उसकी अनन्त उपेक्षा हो रही है। देह की संभाल में हम चौबीसों घंटे समर्पित हैं और भगवान आत्मा के लिए हमारे पास सही मायनों में एक क्षण भी नहीं है। भगवान आत्मा अनन्त उपेक्षा का शिकार होकर सोतेला बेटा बनकर रह गया है। हम इस जड़ नश्वर शरीर के प्रति जितने सतर्क रहते हैं कि आत्मा के प्रति हमारी सतर्कता उसके सहस्रांश भी दिखाई नहीं देती। यदि यह जड़ शरीर अस्वस्थ हो जावे तो हम डॉक्टर के पास दौड़े-दौड़े जाते हैं; जो वह कहता है, उसे अक्षरशः स्वीकार करते हैं; जैसा वह कहता है, वैसे ही चलने को निरन्तर तत्पर रहते हैं; उससे किसी प्रकार का तर्क-वितर्क नहीं करते। यदि वह कहता है कि तुम्हें कैंसर है तो बिना मीन-मेख किये स्वीकार कर लेते हैं। वह कहे ऑपरेशन अतिशीघ्र होना चाहिए और एक लाख रुपये खर्च होंगे, तो मैं स्वयं भगवान हूँ
SR No.009457
Book TitleMain Swayam Bhagawan Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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