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________________ १९८ जिनधर्म-विवेचन २३५. प्रश्न - अर्थपर्याय किसे कहते हैं? उतर - प्रदेशत्वगुण के अतिरिक्त शेष सम्पूर्ण गुणों के कार्य या परिणमन को अर्थपर्याय कहते हैं। अथवा सूक्ष्मपर्यायों को अर्थपर्याय कहते हैं। २३६. प्रश्न - पर्याय के और भी कुछ भेद हैं क्या? उतर - हाँ, पर्याय के अन्य प्रकार से भी दो भेद हैं - १. द्रव्यपर्याय और २. गुणपर्याय। २३७. प्रश्न - द्रव्यपर्याय किसे कहते हैं? (प्रवचनसार की अपेक्षा) उतर - अनेक द्रव्यों की एक जैसी भासित होनेवाली अवस्था को द्रव्यपर्याय कहते हैं। जैसे, धोती, पुस्तक आदि समानजातीयद्रव्यपर्याय हैं; इनमें अनन्त पुद्गल-परमाणु एक जैसे, एक पर्यायरूप भासित होते हैं तथा जीव की नर-नारकादि पर्याय, असमानजातीयद्रव्यपर्याय हैं; इनमें अनन्त पुद्गल-परमाणुओं का स्कन्ध परिणत (औदारिक शरीररूप परिणत आहारवर्गणा, तैजस शरीररूप परिणत तैजसवर्गणा और आठ कर्मरूप परिणत कार्मणवर्गणा) तथा एक जीव, इन सबकी मिलकर एक जैसी लगने वाली एक पर्याय भासित होती है। २३८. प्रश्न - गुणपर्याय किसे कहते हैं? उतर - अर्थपर्याय को ही गुणपर्याय कहते हैं। अथवा गुणों की पर्यायों को गुणपर्याय कहते हैं? २३९. प्रश्न - व्यंजनपर्याय के कितने भेद हैं? उतर - व्यंजनपर्याय के दो भेद हैं - १. स्वभावव्यंजनपर्याय और २. विभावव्यंजनपर्याय। २४०. प्रश्न - स्वभावव्यंजनपर्याय किसे कहते हैं? उतर - पर-निमित्त के सम्बन्धरहित द्रव्य के आकार को स्वभावव्यंजनपर्याय कहते हैं। जैसे, जीव की 'सिद्ध' पर्याय और पुद्गल की 'परमाणुरूप' पर्याय। पर्याय-विवेचन २४१. प्रश्न - विभावव्यंजनपर्याय किसे कहते हैं? उतर - पर-निमित्त के सम्बन्धसहित द्रव्य के आकार को विभावव्यंजनपर्याय कहते हैं। जैसे, जीव की नर-नरकादि पर्याय और पुद्गल की स्कन्धरूप पर्याय। २४२. प्रश्न - अर्थपर्याय के कितने भेद हैं? उतर - अर्थपर्याय के दो भेद हैं - १. स्वभाव-अर्थपर्याय और २. विभाव-अर्थपर्याय । २४३. प्रश्न - स्वभाव-अर्थपर्याय किसे कहते हैं? उतर - पर-निमित्त के सम्बन्धरहित अर्थपर्याय को स्वभावअर्थपर्याय कहते हैं। जैसे, जीव की केवलज्ञानपर्याय । २४४. प्रश्न - विभाव-अर्थपर्याय किसे कहते हैं? उतर - पर-निमित्त के सम्बन्धसहित अर्थपर्याय को विभावअर्थपर्याय कहते हैं? जैसे, जीव की राग-द्वेष आदि पर्याय । २४५. प्रश्न - किस-किस द्रव्य में कौन-कौन सी पर्यायें होती हैं? उतर - जीव और पुद्गल में स्वभाव-अर्थपर्याय, विभावअर्थपर्याय, स्वभाव-व्यंजनपर्याय और विभाव-व्यंजनपर्याय - ये चारों प्रकार की पर्यायें होती हैं। शेष धर्म, अधर्म, आकाश और काल - इन चारों द्रव्यों में स्वभाव-अर्थपर्याय और स्वभाव-व्यंजनपर्याय ही होती हैं। २४६. प्रश्न - श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र गुण में कौन-कौनसी पर्यायें होती हैं? उतर - १. श्रद्धागुण में मिथ्यात्व और सम्यक्त्व - ये दो पर्यायें होती हैं। २. ज्ञानगुण में - कुमति, कुश्रुत और विभंगावधि - ये तीन मिथ्याज्ञान की एवं मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान - ये पाँच सम्यग्ज्ञान की; इसप्रकार कुल आठ पर्यायें होती हैं। ३. चारित्रगुण में - मिथ्याचारित्र और सम्यक्चारित्र - ये दो पर्यायें होती हैं। २४७. प्रश्न - पर्याय का उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य के साथ क्या सम्बन्ध है? (100)
SR No.009455
Book TitleJin Dharm Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Rakesh Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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