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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला यह वैभाविक शक्ति नाम का गुण जीव और पुद्गल दो द्रव्यों में ही है, शेष चार द्रव्यों में नहीं है। ___ जीव के गुणों में स्वयंसिद्ध एक वैभाविकशक्ति है; वह जीव की संसारदशा में अपने कारण स्वयं ही (अनादि काल से) विकृत हो रही है। (पञ्चाध्यायी भाग 2, गाथा 946) मुक्तदशा में वैभाविकशक्ति का शुद्ध परिणमन होता है। (पञ्चाध्यायी भाग 2, गाथा 81) मुक्त-स्वतन्त्र पुद्गल परमाणु जब तक स्वतन्त्र (अबन्ध पर्यायरूप) रहें, तब तक उनके इस गुण की भी शुद्ध पर्याय होती है। प्रश्न 119 - इस वैभाविकशक्ति से क्या समझना? उत्तर - जीव की वैभाविकशक्ति, वह गुण है, इसलिए बन्ध का कारण नहीं है; उसका परिणमन भी बन्ध का कारण नहीं है, क्योंकि उसका परिणमन तो सिद्ध भगवन्तों के भी होता है। यदि जीव परपदार्थों के वश हो जाए तो उसकी पर्याय में विकार (अशुद्धता) होता है; वह जीव का अपना अपराध है। जीव जिस परपदार्थ के वश होता है, उसे निमित्त कहा जाता है। जीव ने विकार किया, (स्वयं अशुद्ध भावरूप परिणमित हुआ), तब किस परपदार्थ के वश हुआ? वह बतलाने के लिए उन परपदार्थों को निमित्तकारण और विकार को नैमित्तिक (कार्य) कहा जाता है। यह कथन भेदज्ञान कराने के लिए है, किन्तु निमित्त ने नैमित्तिक पर कुछ असर किया अथवा प्रभाव डाला - ऐसा बतलाने के लिए वह कथन नहीं है, क्योंकि ऐसा माना जाए तो दो
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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