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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला कहते हैं; अर्थात् स्वरूप रचना के सामर्थ्यरूप शक्ति को वीर्य गुण कहते हैं । ( समयसार - 47 शक्तियों से ) 57 अर्थात् पुरुषार्थरूप परिणामों के कारणभूत जीव की त्रिकाली शक्ति को वीर्य गुण कहते हैं। प्रश्न 109 - भव्यत्व गुण किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस गुण के कारण आत्मा में सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र प्रगट करने की योग्यता रहती है, उस गुण को भव्यत्व गुण कहते हैं । [ भव्यत्व गुण सदैव भव्य जीवों में ही है और अभव्यत्व गुण सदैव अभव्य जीवों में हैं ।] प्रश्न 110 - अभव्य गुण किसे कहते हैं ? उत्तर- जिस गुण के कारण आत्मा में सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र प्रगट करने की योग्यता नहीं होती, उसे अभव्यत्व गुण कहते हैं ? प्रश्न 111 - जीवत्व गुण किसे कहते हैं ? उत्तर - आत्मद्रव्य के कारणभूत चैतन्यमात्र भावरूप भावप्राण का धारण करना जिसका लक्षण है, उस शक्ति को जीवत्व गुण कहते हैं । प्रश्न 112 - प्राण के कितने भेद हैं ? उत्तर - दो भेद हैं- द्रव्यप्राण और भावप्राण । प्रश्न 113 - द्रव्यप्राण के कितने भेद हैं ?
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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