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________________ 416 परिशिष्ट-2 : सर्वज्ञता की महिमा तथापि किसी को उल्टी हानि हो जाए तो उसकी मुख्यता करके मोघ का निषेध तो नहीं किया जा सकता; उसी प्रकार सभा में अध्यात्म उपदेश होने से अनेक जीवों को मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती है, तथापि कोई उलटा, पाप में प्रवर्तन करता हो तो उसकी मुख्यता करके अध्यात्म उपदेश का निषेध नहीं किया जा सकता। ___ दूसरे, अध्यात्म ग्रन्थों से कोई स्वच्छन्दी हो जाये तो वह पहले भी मिथ्यादष्टि था और आज भी मिथ्यादष्टि ही रहा। हाँ. हानि इतनी ही है कि उसकी सुगति न होकर कुगति होती है। और अध्यात्मोपदेश न होने से अनेक जीवों को मोक्षमार्ग की प्राप्ति का अभाव होता है, इसलिए उससे तो अनेक जीवों का महान अहित होता है; इसलिए अध्यात्म-उपदेश का निषेध करना योग्य नहीं है। शङ्का - द्रव्यानुयोपरूप अध्यात्म-उपदेश उत्कृष्ट है और जो उच्चदशा को प्राप्त हो, उसी को कार्यकारी है; किन्तु निचली दशावालों को व्रत, संयमादि का ही उपदेश देना योग्य है। समाधान - जिनमत में तो ऐसी परिपाटी है कि - पहले सम्यक्त्व हो और फिर व्रत होते हैं; अब, सम्यक्त्व तो स्व-पर का श्रद्धान होने पर होता है, तथा वह श्रद्धान द्रव्यानुयोग का अभ्यास करने से होता है। इसलिए द्रव्यानुयोग के अनुसार श्रद्धान करके सम्यग्दृष्टि हो और पश्चात् चरणानुयोग के अनुसार व्रतादिक धारण करके व्रती हो। इस प्रकार मुख्यरूप से तो निचलीदशा में ही द्रव्यानुयोग कार्यकारी है; तथा गौणरूप से जिसे मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती दिखाई न दे, उसे प्रथम कोई व्रतादिक का उपदेश दिया जाता है। इसलिए उच्चदशावाले को अध्यात्मोपदेश अभ्यास करने योग्य है - ऐसा जानकर निचलीदशावालों को वहाँ से पराङ्गमुख होना योगय नहीं है।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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