SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 402 प्रकरण दसवाँ प्रश्न 115 - उपशान्तमोह गुणस्थान का क्या स्वरूप है? उत्तर - चारित्रमोहनीय की 21 प्रकृतियों का उपशम होने से यथाख्यातचारित्र को धारण करनेवाले मुनि को ग्यारहवाँ उपशान्त मोह नामक गुणस्थान होता है। इस गुणस्थान का काल समाप्त होने पर मोहनीय के उदय में युक्त होने से जीव निचले गुणस्थानों में आ जाता है। प्रश्न 116 - क्षीणमोह गुणस्थान का क्या स्वरूप है ? और वह किसे प्राप्त होता है? उत्तर - मोहनीय कर्म का अत्यन्त क्षय होने से स्फटिक भाजनगत् जल की भाँति अत्यन्त निर्मल अविनाशी यथाख्यातचारित्र के धारक मुनि को क्षीणमोह नामक गुणस्थान होता है। प्रश्न 117 - सयोगी गुणस्थान का क्या स्वरूप है ? और वह किसे प्राप्त होता है ? उत्तर - घातिया कर्मों की 47 प्रकृतियाँ और अघातिया कर्मों की 16 प्रकृतियाँ - ऐसी 63 प्रकृतियों* का क्षय होने से लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान तथा आत्मप्रदेशों के कम्पनरूप योग के धारक अरिहन्त भट्टारक को सयांगी केवली नाम का तेरहवाँ गुणस्थान प्राप्त होता है। वे ही केवली भगवान अपनी दिव्यध्वनि से भव्य जीवों को मोक्षमार्ग का उपदेश देकर संसार में मोक्षमार्ग का प्रकाश करते हैं। प्रश्न 118 - अयोगी केवली गुणस्थान का क्या स्वरूप है ? और वह किसे प्राप्त होता है ? * 63 प्रकृतियों के लिए श्री जैन सिद्धान्त प्रवेशिका देखें।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy