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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 369 तक जीव को सच्चे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति न हो, तब तक क्रमपूर्वक उपरोक्तानुसार कार्य करना चाहिए। (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 486 ) प्रश्न 26 - सात तत्त्वों की यथार्थ श्रद्धा में देव-गुरु-धर्म की श्रद्धा किस प्रकार आ जाती है ? उत्तर - (1) मोक्षतत्त्व, सर्वज्ञ-वीतराग स्वभाव है, उसके धारक श्री अरिहन्त - सिद्ध हैं, वे ही निर्दोष देव हैं, इसलिए जिसे मोक्ष तत्त्व की श्रद्धा है, उसे सच्चे देव की भी श्रद्धा है। (2) संवर-निर्जरा, निश्चयरत्नत्रय स्वभाव है, उसके धारक भावलिङ्गी आचार्य, उपाध्याय और साधु हैं; वे ही निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनि गुरु हैं; इसलिए जिसे संवर-निर्जरा के स्वरूप की सच्ची श्रद्धा है, उसी को सच्चे गुरु की श्रद्धा है। (3) जीवतत्त्व का स्वभाव रागादि घात रहित शुद्ध चैतन्य प्राणमय है, उस स्वभाव सहित अहिंसा धर्म है; इसलिए जिस शुद्ध जीव की तत्त्व की श्रद्धा है उसे (निज आत्मा के) अहिंसा धर्म की श्रद्धा है। (विद्वज्जनबोधक, भाग 1, पृष्ठ 79) (मोक्षमार्गप्रकाशक-दिल्ली, पृष्ठ 482 में यही अर्थ है) प्रश्न 27 - सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर - (1) जिस गुण की निर्मलदशा प्रगट होने अपने शुद्धात्मा का प्रतिभास हो, अखण्ड ज्ञायक स्वभाव की प्रतीति हो। (2) सच्चे देव-गुरु-धर्म में दृढ़ प्रतीति हो। (3) जीवादि सात तत्त्वों की यथार्थ प्रतीति हो। (4) स्व-पर का श्रद्धान हो।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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