SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 319 है, और वह कथन व्यवहारनय का कथन है। अशुभ से बचने के लिए शुभराग को निमित्तमात्र कहा है। उसका भावार्थ तो यह है कि वास्तव में वह वीतरागता का शत्रु है, किन्तु निमित्त का ज्ञान कराने के लिए व्यवहारनय द्वारा ऐसा ही कथन होता है। (2) जो जैन पूजा, व्रत, दानादि शुभक्रिया से धर्म मानते हैं, वे जिनमत के बाहर हैं, क्योंकि भावपाहुड़ गाथा 84-85 के भावार्थ में कहा है कि - 'शुभक्रियारूप पुण्य को धर्म मानकर जो उसका श्रद्धान, ज्ञान, आचरण करे, उसे पुण्यकर्म का बन्ध होता है; उससे स्वर्गादि के भोग की प्राप्ति होती है, किन्तु उससे कर्म के क्षयरूप संवरनिर्जरा-मोक्ष नहीं होता... मोह क्षोभरहित आत्मा के परिणाम ही धर्म है। यह धर्म ही संसार पार उतारनेवाला मोक्ष का कारण है - ऐसा श्रीभगवान ने कहा है।' (3) 'लौकिकजन तथा अन्यमती कोई कहे कि - जो पूजादिक शुभक्रिया और व्रतक्रियासहित हो, वह जैनधर्म है, किन्तु ऐसा नहीं... उपवास, व्रतादि जो शुभक्रिया है, जिसमें आत्मा के रागसहित शुभपरिणाम हैं, उससे पुण्यकर्म उत्पन्न होता है; इसलिए उसे पुण्य कहते हैं; और उसका फल स्वर्गादिक भोग की प्राप्ति है... जो विकाररहित शुद्ध दर्शन-ज्ञानरूप निश्चय हो, वह आत्मा का धर्म है; उस धर्म से आत्मा को आगामी कर्मों का आस्रव रुककर संवर होता है और पूर्व काल में बाँधे हुए कर्मों की निर्जरा होती है। सम्पूर्ण निर्जरा होने पर मोक्ष होता है....' (भावपाहुड़ गाथा 83 का भावार्थ) (4) जो परमात्मा की पूजा-भक्ति आदि शुभराग से अपना
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy