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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 315 साधक को रागरहित ज्ञायकस्वभाव की दृष्टि हुई होने पर भी, अभी पर्याय में राग भी होता है। साधक-स्वभाव की श्रद्धा में राग का निषेध हुआ होने पर भी उसे गुणभेद के कारण चारित्रगुण की पर्याय में अभी राग होता है। ऐसे गुणभेद से आत्मा को जानना, वह अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय है। 3. उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय - साधक ऐसा जानता है कि अभी मेरी पर्याय में विकार होता है। उसमें जो व्यक्त राग-बुद्धिपूर्वक का राग-प्रगट ख्याल में लिया जा सकता है, वैसे बुद्धिपूर्वक के विकार को आत्मा का जानना, वह उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय है। 4. अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय - जिस समय बुद्धिपूर्वक का विकार है, उस समय अपने ख्याल में न जा सके - ऐसा अबुद्धिपूर्वक का विकार भी है; उसे जानना, वह अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय है। प्रश्न 55 - द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय का विषय क्या है? उत्तर - 1. द्रव्यार्थिकनय का विषय त्रिकाली द्रव्य है और पर्यायार्थिकनय का विषय क्षणिक है। द्रव्यार्थिकनय के विषय में गुण भिन्न नहीं हैं, क्योंकि गुण को पृथक् करके लक्ष्य में लेने से विकल्प उठता है और विकल्प, वह पर्यायार्थिकनय का विषय है। (स्वाध्यायमन्दिर सोनगढ़ से प्रकाशित, मोक्षशास्त्र अध्याय 1, सूत्र 6, टीका) 2. द्रव्यार्थिकनय को निश्चयनय और पर्यायार्थिकनय को व्यवहारनय कहते हैं।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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