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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 273 है - ऐसा 'सम्यक् नियतिवाद' जैनदर्शन का वास्तविक स्वभाव है - यही वस्तुस्वभाव है। 'नियत' शब्द शास्त्रों में अनेक जगह आता है किन्तु नियत का अर्थ है निश्चित-नियमबद्ध; वह एकान्तवाद नहीं किन्तु वस्तु का यथार्थ स्वभाव है, यही अनेकान्तवाद है। सम्यनियतवाद का निर्णय करते समय, बाह्य में राजपाट का संयोग हो तो वह छूट ही जाना चाहिए - ऐसा नियम नहीं है किन्तु उसके प्रति यथार्थ उदासभाव अवश्य हो जाता है। बाह्य संयोग में अन्तर पड़े या न पड़े किन्तु अन्तर के निर्णय में अन्तर पड़ जाता है। अज्ञानी जीव नियतवाद की बातें करता है किन्तु ज्ञान और पुरुषार्थ को स्वभावसन्मुख करके निर्णय नहीं करता। नियतवाद का निर्णय करने में जो ज्ञान और पुरुषार्थ आता है, उसे यदि जीव पहिचाने तो स्वभावाश्रित वीतरागभाव प्रगट हो और पर से उदास हो जाए क्योंकि सम्यक् नियतवाद का निर्णय किया कि स्वयं सबका मात्र ज्ञानभाव से ज्ञाता-दृष्टा रह गया और पर का या राग का कर्ता नहीं रहा। जब स्वचतुष्टय में परचतुष्टय की नास्ति ही है तो फिर उसमें पर क्या करें? जब उपादान-निमित्त का यथार्थ निर्णय हो जाता है, तब पर का कर्त्तत्वभाव उड़ जाता है और वीतरागदृष्टिपूर्वक वीतरागी स्थिरता का प्रारम्भ हो जाता है। अज्ञानीजन इस नियतवाद को एकान्तवाद और गृहीतमिथ्यात्व कहते हैं किन्तु ज्ञानीजन कहते हैं कि यह सम्यक् नियतवाद ही अनेकान्तवाद है और इसके निर्णय में जैनदर्शन का सार आ जाता है तथा यह केवलज्ञान का कारण है। कुछ अकस्मात् है ही नहीं प्रश्न - सम्यग्दृष्टि के अकस्मात् भय नहीं होता, इसका क्या कारण है?
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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