SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला गतिवान अजीव प्रेरक निमित्त हैं और इच्छारहित जीव तथा गतिहीन अजीव उदासीन निमित्त हैं परन्तु दोनों प्रकार के निमित्त पर में बिल्कुल कार्य नहीं करते। जब घड़ा बनता है, तब उसमें कुम्हार और चाक प्रेरक निमित्त हैं तथा धर्मास्तिकाय इत्यादि उदासीन निमित्त हैं किन्तु हैं तो सब अकिञ्चित्कर । 263 यह बात निमित्त की है कि भगवान महावीर के समवसरण में गौतमगणधर के आने से दिव्यध्वनि खिरी और पहले छियासठ दिन तक उनके न आने से भगवान की ध्वनि खिरने से रुकी रही । वाणी के परमाणुओं में जिस समय वाणीरूप से परिणमित होने की योग्यता थी, उस समय ही वे वाणीरूप में परिणमित हुए और उस समय वहाँ गणधरदेव की अवश्य उपस्थिति रहती है । गणधर आये इसलिए वाणी छूटी ऐसी बात नहीं है । गणधर जिस समय आये, उसी समय उनकी आने की योग्यता थी- ऐसा ही सहज निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध है; इसलिए इस तर्क को अवकाश ही नहीं है कि यदि गौतमगणधर न आये होते तो वाणी कैसे छूटती ? निमित्त न हो तो...? - 'कार्य होना हो और निमित्त न हो तो... ?' ऐसी शङ्का करनेवाले से ज्ञानी पूछते हैं कि 'हे भाई! इस जगत् में तू जीव ही न होता तो ? अथवा तू अजीव होता तो ?' तब शङ्काकार उत्तर देता है कि 'मैं जीव ही हूँ' इसलिए दूसरे तर्क को स्थान नहीं है। तब ज्ञानी कहते हैं कि जैसे, तू स्वभाव से ही जीव है, इसलिए उसमें दूसरे तर्क को स्थान नहीं है; इसी प्रकार 'जब उपादान में कार्य होता है, तब निमित्त उपस्थित ही है ' ऐसा ही उपादान - निमित्त का स्वभाव है, इसलिए इसमें दूसरे तर्क को अवकाश नहीं है।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy