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________________ प्रकरण पहला स्पर्श करता है, पर का स्पर्श नहीं करता। जैसे कि मिट्टी के पिण्ड में से घड़ा हुआ; वहाँ पिण्ड अवस्था के व्यय को, घट अवस्था के उत्पाद को और मिट्टीपने की ध्रुवता को वह मिट्टी स्पर्श करती है, किन्तु वह कुम्हार को, चाक को, डोरी को या अन्य किसी परद्रव्य को स्पर्श नहीं करती; और कुम्हार भी हाथ के हलन-चलनरूप अपनी अवस्था जो उत्पाद हुआ, उस उत्पाद का स्पर्श करता है, किन्तु अपने से बाह्य ऐसे घड़े को वह स्पर्श नहीं करता। जगत् में छहों द्रव्य एक ही क्षेत्र में विद्यमान होने पर भी कोई द्रव्य दूसरे द्रव्य के स्वभाव को स्पर्श नहीं करता; अपने-अपने उत्पाद-व्यय-ध्रुवतारूप स्वभाव में ही प्रत्येक द्रव्य वर्तता है, इसलिए वह अपने स्वभाव को ही स्पर्श करता है। देखो, यह सर्वज्ञदेव कथित वीतरागी भेदज्ञान ! निमित्त-उपादान का स्पष्टीकरण भी इसमें आ जाता है। उपादान और निमित्त, यह दोनों पदार्थ एक साथ प्रवर्तमान होने पर भी उपादानरूप पदार्थ अपने उत्पाद-व्यय-ध्रुवतारूप स्वभाव का ही स्पर्श करता है; निमित्त का किञ्चित् भी स्पर्श नहीं करता और निमित्तभूत पदार्थ भी उसके अपने उत्पाद-व्यय-ध्रुवतारूप स्वभाव का ही स्पर्श करता है; उपादान का वह किञ्चित् स्पर्श नहीं करता। उपादान और निमित्त दोनों पृथक्-पृथक् अपने-अपने स्वभाव में ही वर्तते हैं, परिणमन करते हैं। अहो ! पदार्थों का यह उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वभाव भलीभाँति पहिचान ले तो भेदज्ञान होकर स्वद्रव्य के ही आश्रय से निर्मल पर्याय का उत्पाद और मलिनता का व्यय हो - उसका नाम धर्म
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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