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________________ 178 प्रकरण छठवाँ की विकारी पर्याय है। द्रव्य का प्रत्येक गुण स्वतन्त्र और असहाय है। इसलिए जीव की इच्छा या अभिप्राय चाहे जिस प्रकार के होने पर भी, उसकी क्रियावतीशक्ति का परिणमन उनसे (अभिप्राय या इच्छा से) स्वतन्त्ररूप से उस समय की उस पर्याय के धर्मानुसार होता है... (4) नरकगति के भव का बन्ध अपने पुरुषार्थ के दोष से हुआ था; इसलिए योग्य समय में उसके फलरूप से जीव की अपनी योग्यता के कारण नरक का क्षेत्र संयोगरूप से होता है; कर्म उसे नरक में नहीं ले जाता। कर्म के कारण जीव, नरक में जाता है - ऐसा कहना तो मात्र उपचार कथन है। जीव का कर्म के साथ निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध बतलाने के लिए शास्त्रों में वह कथन किया है परन्तु वास्तव में जड़कर्म, जीव को नरक में ले जाता है - ऐसा बतलाने के लिए नहीं किया। (स्वाध्याय मन्दिर ट्रसट द्वारा प्रकाशित हिन्दी आवृति मोक्षशास्त्र, अध्याय 3, सूत्र 6 की टीका) प्रश्न 36 - उपादान और निमित्त कारणों को अन्य किन नामों से कहा जाता है? उत्तर - (1) उपादान को अन्तरङ्ग कारण और निमित्त को बहिरङ्ग कारण कहते हैं। (2) उपादान को अनुपचार (निश्चय) और निमित्त को उपचार (व्यवहार) कारण कहा जाता है। (3) निमित्तकारण को सहकारीकारण भी कहा जाता है। प्रश्न 37 - निमित्त कारणों में कौन-कौन से भेद पड़ते हैं ?
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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