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________________ 168 प्रकरण छठवाँ मोक्षकारणपने का आरोप आता है। - इस प्रकार उपादान के कार्य के अनुसार निमित्त में कारणपने का भिन्न-भिन्न आरोप किया जाता है। इससे ऐसा सिद्ध होता है कि निमित्त से कार्य नहीं होता परन्तु कथन होता है; इसलिए उपादान सच्चा कारण है और निमित्त आरोपित कारण I वास्तव में तो निमित्त ऐसा प्रसिद्ध करता है कि नैमित्तिक स्वतन्त्र अपने कारण से परिणमन कर रहा है, तो उपस्थित दूसरी अनुकूल वस्तु को निमित्त कहा जाता है। प्रश्न 29 - निमित्त के बिना कार्य होता है ? उत्तर- (1) निश्चय से तो निमित्त के बिना ही सर्वत्र स्वयं उपादान की योग्यता से ही कार्य होता है; उस काल उचित निमित्त होता है, यह व्यवहार कथन है। नियम ऐसा है कि निश्चय से उपादान के बिना कोई कार्य नहीं होता। कार्य, वह पर्याय है और निश्चय से वह पर से (निमित्त से) निरपेक्ष होती है।' (2) निमित्त, व्यवहारकारण है ऐसा न माननेवाले को 'निमित्त के बिना कार्य नहीं होता' - ऐसा बतलाया जाता है, किन्तु व्यवहार के कथनों निश्चय के कथन समझना, वह भूल है । [ समयसार गाथा 324, 327 तथा टीका का आशय ] (3) ऐसा नहीं है कि कभी कार्य के लिए निमित्त की प्रतीक्षा 1. [ देखो, ( 1 ) समयसार, गाथा 308 से 311 तथा उसकी संस्कृत टीका। (2) पञ्चास्तिकाय, गाथा 62 संस्कृत टीका । ( 3 ) बनारसीदासजी के उपादाननिमित्त दोहे; नम्बर 4, 5, 61 (4) प्रवचनसार, गाथा 100 की जयसेनाचार्य टीका तथा प्रवचनसार, गाथा 160 और उसकी अमृतचन्द्राचार्य कृत टीका ]
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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