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________________ 146 प्रकरण छठवाँ निजशक्ति अथवा निश्चय कहते हैं और निमित्त को परयोग अथवा व्यवहार कहते हैं। प्रश्न 4 - उपादानकारण किसे कहते हैं ? उत्तर - (1) जो द्रव्य स्वयं कार्यरूप परिणमित हो, उसे उपादानकारण कहते हैं; जैसे कि - घड़े की उत्पत्ति मिट्टी उसका त्रिकाली उपादानकारण है; (द्रव्यार्थिकनय से है।) (2) अनादि काल से द्रव्य में जो पर्यायों का प्रवाह चला आ रहा है, उसमें अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय उपादानकारण है और अनन्तर उत्तर क्षणवर्ती पर्याय कार्य है; जैसे कि - मिट्टी का घड़ा होने में मिट्टी का पिण्ड, वह घड़े की अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय है और घडारूप कार्य. वह पिण्ड की अनन्तर उत्तर क्षणवर्ती पर्याय है। अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय का व्यय, वह क्षणिक उपादानकारण कहा जाता है। (पर्यायार्थिकनय से है।) (3) उस समय की पर्याय की योग्यता, वह उपादानकारण है और वहीं पर्याय कार्य है। उपादान ही सच्चा (वास्तविक) कारण (पर्यायार्थिकनय से) है। [आधार - ध्रुवउपादान तथा क्षणिक उपादान के लिए देखो - (1) अष्टसहस्त्री श्लोक 58, टीका, पृष्ठ 210, (2) चिविलास, पृष्ठ 36, (3) ज्ञानदर्पण, पृष्ठ 25-40-56 ] प्रश्न 5 - योग्यता किसे कहते हैं ? उत्तर - योग्यतैव विषयप्रतिनियमकारणामिति। (न्याय दीपिका, पृष्ठ 27) (1) योग्यता ही विषय का प्रतिनियामक कारण है। [यह कथन ज्ञान की योग्यता (सामर्थ्य) को लेकर है परन्तु योग्यता का कारणपना सर्व में सर्वत्र समान है।]
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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