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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला चार मनोयोग सत्य मनोयोग, असत्य मनोयोग, उभय मनोयोग और अनुभय मनोयोग; सात काय योग – औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियिक, र्वक्रियिक मिश्र, आहारक, आहारक मिश्र और कार्मण; चार वचनयोग सत्य वचनयोग, असत्य वचनयोग, उभय वचनयोग और अनुभय वचनयोग) — प्रश्न 99 103 - चतुष्टय प्रश्न 98 - स्वचतुष्टय और परचतुष्टय का क्या अर्थ ? उत्तर - स्वचतुष्टय अर्थात् अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव; परचतुष्टय अर्थात अपने से भिन्न ऐसे पर पदार्थों के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव | - आत्मा के स्वचतुष्टय समझाइये | उत्तर- (1) स्वद्रव्य - अपने ज्ञानादि गुणों और पर्यायों से अभिन्न, वह स्वद्रव्य है । (2) स्वक्षेत्र - लोकप्रमाण अपने असंख्य प्रदेश हैं, वह आत्मा का स्वक्षेत्र है । (3) स्वकाल - नित्य स्वभाव को छोड़े बिना निरन्तर क्रमबद्ध अपने-अपने अवसर में नयी-नयी पर्यायों का जो उत्पाद होता रहता है, उस निज परिणाम का नाम स्वकाल है । (4) स्वभाव - द्रव्य के आश्रय में रहनेवाले त्रिकाली शक्तिरूप जो अनन्त गुण हैं, वह स्वभाव है । प्रश्न 100 - पुद्गल परमाणु के स्वतुष्टय समझाओ । उत्तर- (1) द्रव्य - अपने स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, अस्तित्व
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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