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________________ प्रवेश पाने के लिए सर्व साधारण को बिलकुल सुगम बन जाता डा. भारिल्लजी धर्म प्रचार के क्षेत्र में आशातीत वीर योद्धा की तरह महान कार्य कर रहे हैं । आने वाले युग में धर्म प्रचार की बहुमुखी उन्नति के लिए भारिल्लजी का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायगा । पण्डित भरतचक्रवर्ती शास्त्री, निदेशक-जैन साहित्य शोध संस्थान ; तारणस्वामी के ज्ञान-समुच्चयसार की कतिपय गाथाओं पर अध्यात्मजगत के वरिष्ठ विद्वान जैनरत्न डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के मार्मिक प्रवचनों का सार ही 'गागर में सागर' ग्रन्थ है । इसके प्रत्येक वाक्य में इतनी गहरी बातें भरी पड़ी हैं, जिसकी व्याख्या करें तो एक अलग पुस्तक बन जाएगी । इस कृति में अहिंसा के सच्चे अर्थ को सर्वाङ्गीण रूप से अवगत करने का सफल उपक्रम किया गया है । __ यह ग्रन्थ अज्ञानता एवं पर्यायमूढता के विरुद्ध उठायी गयी भारिल्लजी की पैनी सम्यग्ज्ञान तलवार है । विद्यावारिधि डॉ. महेन्द्रसागरजी प्रचण्डिया, डी. लिट. ; अलीगढ (उ.प्र.) 'गागर में सागर' कृति का उपजीव्य श्री जिन तारणस्वामी कृत ज्ञान समुच्चयसार है। प्रवाचक प्रमुख महामनीषी डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल द्वारा कतिपय गाथाओं को निहित सारस्वत सम्पदा का सावधानीपूर्वक विवेचन किया गया है, फलस्वरूप कृति में ज्ञानगोमती निर्बाध प्रवाहित हो उठी है । कृति के अन्त में 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' विषय पर विद्वान वक्ता द्वारा दिया गया प्रवचन भी संश्लिष्ट किया गया है । यह संकलन संपादक पण्डित रतनचन्द भारिल्ल की सूझबूझ का परिचायक है । सारसारांश यह है कि 'गागर में सागर' प्रत्येक स्वाध्यायी के लिए उपयोगी ज्ञाननिधि ही है ।
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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