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________________ १६ भगवान महावीर और उनकी अहिंसा . भाई ! यदि सुखी होना है तो इस परमामृतरस का पान करों, इस परमरसायन का सेवन करो । जब हम इस परमामृत पान की पावन प्रेरणा देते हैं तो कुछ लोग कहने लगते हैं :___ "आपकी बातें तो बहुत अच्छी हैं, पर अकेले हमारे अहिंसक हो । जाने से क्या होनेवाला है, क्योंकि अकेला चना तो भाड़ फोड़ नहीं सकता । अतः पहले सारी दुनियाँ को यह अहिसा समझायो, म्वीकार करामो; बाद में हम भी स्वीकार कर लेंगे।" हमारा उनसे कहना यह है कि भाई ! अहिंसा तो अमृत है ; जो इस अमृत के प्याले को पियेगा, वह अमर होगा, सुखी होगा, शान्त होगा। भाई ! इस पावन अहिंसा को यदि व्यक्ति अपनायेगा तो व्यक्ति सुखी होगा, परिवार अपनायेगा तो परिवार सुखी होगा, समाज अपनायेगा तो समाज सुखी होगा और देश अपनायेगा तो देश सुखी होगा । अतः दूसरों पर टालने. की अपेक्षा 'भले काम को अपने घर से ही प्रारम्भ कर देना चाहिए' की लोकोक्ति के अनुसार हमें अहिंसा को सच्चे दिल से समझने एवं जीवन में अपनाने का कार्य स्वयं से ही प्रारम्भ कर देना चाहिए । अधिक क्या कहें ? भाई, सभी प्राणी भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित इस अहिंसा सिद्धान्त को गहराई से समझे; मात्र समझे ही नहीं, जीवन में अपनायें और सहज सुख-शान्ति को प्राप्त करें - इस पावन भावना से विराम लेता हूँ।
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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