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________________ ७८ भगवान महावीर और उनकी अहिंसा हाँ, रुकना चाहिए, अवश्य रुकना चाहिए। काया की हिंसा को सरकार रोकती है तो वाणी की हिंसा को समाज रोकता है। कैसे? जो लोग वाणी का सदुपयोग करते हैं, समाज उनका सन्मान करता है और जो दुरुपयोग करते हैं, समाज उनका अपमान करता है। अपनी सज्जनता के खातिर अपमान न भी करे तो कम से कम सन्मान तो नहीं करता। आप सब बड़े-बड़े लोग नीचे बैठ गये हैं और मुझे यहाँ ऊपर गद्दी पर बिठा दिया है । क्यों, ऐसा क्यों किया आप सबने ? इसीलिए न कि मैं आपको भगवान महावीर की अच्छी बातें बता रहा हूँ ! यदि मैं अभी यहीं बैठा-बैठा स्पीकर पर ही आप सबको गालियाँ देने लगूं तो क्या होगा? क्या आप मुझे इतने सन्मान से दुबारा बुलायेंगें? नहीं, कदापि नहीं । देखो! यह आपके अध्यक्ष महोदय क्या कह रहे हैं ? ये कह रहे हैं कि आप दुबारा बुलाने की बात कर रहे हैं, अरे अभी तो अभी की सोचो कि अभी क्या होगा? भाई ! जो व्यक्ति अपनी वाणी का सदुपयोग करता है, समाज उसका सन्मान करता है और जो दुरुपयोग करता है, उसकी उपेक्षा या अपमान । इसप्रकार सन्मान के लोभ से एवं उपेक्षा या अपमान के भय से हम बहुत-कुछ अपनी वाणी पर भी संयम रखते हैं। पर यदि मैं अभी यहीं बैठे-बैठे आप सबको मन में गालियां देने लगू तो मेरा क्या कर लेगा समाज और क्या कर लेगी सरकार ? __यही कारण है कि भगवान महावीर ने कहा कि न जहाँ सरकार का प्रवेश है और न जहाँ समाज को चलती है, धर्म का काम वहीं से प्रारंभ होता है। अतः उन्होंने ठीक ही कहा है कि प्रात्मा में रागादि की उत्पत्ति हो हिंसा है और आत्मा में रागादि की उत्पत्ति नहीं होना ही अहिंसा है - यही जिनागम का सार है । भगवान महावीर ने हिंसा-अहिंसा की. परिभाषा में 'प्रात्मा' शब्द का प्रयोग क्यों किया है - यह बात तो स्पष्ट हुई। ध्यान रहे- यहाँ समझाने के लिए प्रात्मा और मन को अभेद मानकर बात कही जा रही है।
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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