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________________ भगवान महावीर और उनकी अहिंसा समय भी नहीं है कि हम इन्हें पूरा पढ़ सकें। अत: हमारे हित की बात हमें संक्षेप में समझाइये न?" ___ उनकी बात सुनकर महाकवि व्यास बोले : "भाई ! ये अठारह पुराण तो हमने हम जैसों के लिए ही बनाये हैं, तुम्हारे लिए तो मात्र इतना ही पर्याप्त है : अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयं । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीड़नम् ।। अठारह पुराणों में महाकवि व्यास ने मात्र दो ही बातें कही हैं कि यदि परोपकार करोगे तो पुण्य होगा और पर को पीड़ा पहुँचाओगे तो पाप होगा। मात्र इतना जान लो, इतना मान लो और सच्चे हृदय से जीवन में अपना लो-तुम्हारा जीवन सार्थक हो जायेगा।" . मानों इसीप्रकार भगवान महावीर के अनुयायी भी उनके पास पहुँचे और कहने लगे कि महर्षि व्यास ने तो अठारह पुराणों का सार दो पंक्तियों में बता दिया; आप भी जैनदर्शन का सार दो पंक्तियों में बता दीजिये न, हमें भी ये प्राकृत-संस्कृत में लिखे मोटे-मोटे ग्रन्थराज समयसार, गोम्मटसार पढ़ने की फुर्सत कहाँ है ? मानों उत्तर में महावीर कहते हैं :___"अप्रादुर्भावः खलु रागादीनां भवाहिसेति । तेषामेवोत्पत्तिहिसेति जिनागमस्य संक्षेपः ॥' आत्मा में रागादि भावों की उत्पत्ति हो हिंसा है और आत्मा में रागादि भावों की उत्पत्ति नहीं होना ही अहिंसा है - यही जिनागम का सार है।" आत्मा में रागादि भावों की उत्पत्ति ही हिंसा है - यह कहकर यहाँ भावहिंसा पर विशेष बल दिया है, द्रव्यहिंसा की चर्चा तक नहीं की; अतः यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या महावीर द्रव्यहिंसा को हिंसा ही नहीं मानते हैं ? यदि मानते हैं तो फिर सीधे-सच्चे शब्दों १ पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक ४४ २ इसी प्रकार की एक गाथा कपायपाहुड़ में प्राप्त होती है, जो इसप्रकार है : रागादीरणमणप्पा अहिंसगत्तं ति देसिदं समये । तेसि चे उप्पत्ती हिसेत्ति जिणेहि रिणविट्ठा ॥
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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