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________________ ४० गाथा ५६ पर प्रवचन इसीप्रकार भगवान प्रात्मा का नाम सुनते ही आत्मार्थी आनन्दित हो उठते हैं। जिसका हृदय भगवान पात्मा नाम सुनकर तरंगित नहीं होता तो समझना चाहिए कि उसके लिए अभी दिल्ली बहुत दूर है; पर जो आत्मा का नाम सुनते ही मुंह विचकाने लगते हैं, उनकी तो बात ही क्या कहें ? यदि वही नर्स पाकुलित घरवालों को यह समाचार दे कि बारात आयगी तो सबका मुंह लटक जाता है । 'बारात प्रायगी' का अर्थ तो आप समझ ही गये होंगे । 'बारात आयगी' का अर्थ है - बच्ची हुई है। भाई, यह बात तो सब समझते हैं, इसमें कुछ समझाने की आवश्यकता नहीं है। 'बारात आयगी' सुनते ही सब के चित्त में वे सभी दृश्य एक साथ घूम जाते हैं, जो कालान्तर में उन्हें भोगने होंगे। लड़का खोजते-खोजते जूते घिस जायेंगे, लाखों रुपये खर्च होकर भी निश्चिन्तता हाथ नहीं आवेगी। 'बारात आयगी' एक ही शब्द में संपूर्ण जीवन चित्रित हो जाता है और चेहरा लटक जाता है। "भगवान आत्मा" की बात सुनकर हमारा चेहरा लटकता है या हम रोमांचित हो उठते हैं - इससे ही इस वात का निर्णय होगा कि | हमने भगवान आत्मा को आनन्द का कंद माना है या संकटों का सागर? ___ यदि हमने उसे आनन्द का कंद माना है, जाना है तो आनन्द की धारा फूटना ही चाहिए; अतः हे प्रात्मन, तू अपने ज्ञानानन्दस्वभावी स्वरूप को पहिचान ! सुखो होने का, शान्त होने का एकमात्र उपाय निज भगवान आत्मा को जानना, पहिचानना ही है, उसी में जमनारमना ही है। सभी प्रात्मा अपने ज्ञानानन्दस्वभावी भगवान आत्मा को जाने, पहिचाने और उसी में जमकर, उसी में रमकर अनन्त सुखी हों- इस पावन भावना से आज विराम लेता हूँ।
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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