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________________ ३८ गाथा ५६ पर प्रवचन हो; वह जिनवाणी का प्रवचनकार ही नहीं है। सीधी सरल भाषा में भगवान आत्मा की बात समझाना, भगवान आत्मा के दर्शन करने की प्रेरणा देना, अनुभव करने की प्रेरणा देना, श्रात्मा में ही समा जाने की प्रेरणा देना ही सच्चा प्रवचन है । कई प्रवचनकार आत्मा के अनुभव की सीधी सच्ची बात न कहकर ऐसी कठिन शैली में ऐसी कठिन बात कहेंगे कि किसी के पल्ले कुछ भी न पड़े । वे अपनी विद्वत्ता इसी में समझते हैं । यदि उनकी बात किसी की समझ में आ जाय तो वे बड़े पंडित कैसे रहेंगे ? वे कठिन बोलने में ही अपना गौरव समझते हैं; पर भाई साहब ! जब उनकी बात किसी की समझ में ही नहीं आवे तो इससे क्या भला होगा जगत का ? प्रवचन करने का प्रयोजन पांडित्य-प्रदर्शन नहीं, अपितु आत्महितकारी तत्त्व की वात जन-जन तक पहुँचाना है । स्वयं आत्मानुभव में प्रवृत्त होना और एकमात्र आत्मानुभव की प्रेरणा देना ही सच्चा पांडित्य है । किसी उर्दू के शायर ने कहा है कि 'खुदा की तस्वीर दिल के आइने में है, जब चाहा गर्दन झुकाकर देख ली ।' तात्पर्य यह है कि खुदा के दर्शन के लिए यहाँ वहाँ भटकने की आवश्यकता नहीं है । तुझे तेरा खुदा बाहर देखने से दिखाई नहीं देगा । अतः बाहर किसी प्राकृति के रूप में उसे देखने का प्रयत्न मत कर, अपने अन्दर झाँककर देख ! यह तो पर-परमात्मा के दर्शन की बात है । अपने हृदय में झांकने से वह नहीं, उसकी तस्वीर हो दिखाई देगी और गर्दन भी झुकानी पड़ेगी । पर निज भगवान आत्मा जो तू स्वयं है, उसके दर्शन के लिए गर्दन झुकाने की भी आवश्यकता नहीं है, मात्र दृष्टि पलटनी है, उपयोग को पलटना है, उपयोग को अपने में झुकाना है । पर ध्यान रहे - यहाँ भगवान आत्मा की तस्वीर दिखाई नहीं देगी, अपितु स्वयं भगवान आत्मा के साक्षात् दर्शन होंगे। मात्र दर्शन ही नहीं होंगे, अपितु तू स्वयं पर्याय में भी भगवान बनने की प्रक्रिया में चढ़ जायगा । भाई ! एक बार करके तो देख यह सब, निहाल हो जायगा । स्वभाव से तो तू भगवान है ही । पर्याय में जो पामरता है, उसकी सीमा भी मात्र इतनी ही हैं कि उस पर्याय ने स्वभाव के सामर्थ्य को पहिचाना नहीं । पहिचानने मात्र की देर है, अंधेर नहीं है । अतः सावधान हो और अपने स्वभाव की सामर्थ्य को पहिचान |
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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