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________________ १०१ गागर में सागर तीर्थंकर (मासिक) इन्दौर; दिसम्बर - ८५ ई. । प्रस्तुत कृति में डॉ. भारिल्ल के श्री जिन तारण तरण स्वामी की बहुमूल्य कृति 'ज्ञान समुच्चयसार की गाथा क्र. ४४, ५९, ७६ और ८९७ पर चार प्रवचन तथा 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा शीर्षक से लोकप्रिय दो व्याख्यान संकलित हैं । विद्वान प्रवचनकार ने जिन गाथाओं को प्रवचनार्थ चुना है, उनमें आत्मा के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है । कुल मिलाकर पुस्तक पठनीय है । प्रकाशन नयनाभिराम है, मूल्य भी कम है । डॉ. नेमीचन्द जैन, सम्पादक सन्मति - वाणी (मासिक) इन्दौर जनवरी १९८६ ई. । श्री जिन तारण तरण स्वामी विरचित ज्ञान समुच्चयसार की गाथाओं एवं 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा पर आधारित सुप्रसिद्ध विद्वान, वक्ता एवं लेखक डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल के प्रवचनों का यह अपूर्व संग्रह है । आवरण एवं जिल्द आकर्षक है । सन्मति - सन्देश (मासिक) दिल्ली, फरवरी १९८६ ई. । समीक्ष्य प्रकाशन में अध्यात्म रसिक संत तारणस्वामी रचित ज्ञान-समुच्चयसार की कुछ गाथाओं पर भारिल्लजी के प्रवचन संकलित किये गये हैं । इसी प्रकाशन के अन्त में 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा पर संकलित प्रवचन में अहिंसा के रहस्य को खोला गया है । अल्पावधि में ही इसकी आठ हजार प्रतियां प्रकाशित होकर जनता के हाथ में पहुँच चुकी हैं, जो इसकी लोकप्रियता का सबसे बडा प्रमाण है । समन्वय - वाणी (मासिक) जयपुर, जनवरी १९८६ ई. । तारण तरण स्वामी कृत ज्ञानसमुच्चयसार की प्रमुख गाथाओं तथा 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' पर डॉ. भारिल्लजी के मार्मिक व्याख्यानों को सुसम्पादित कर सुन्दर कलेवर में प्रस्तुत किया गया है । कृति को आद्योपन्त पढने से लगता है भारिल्लजी लेखन के क्षेत्र में तो बेजोड हैं ही, प्रवचनकार के रूप में भी उनका
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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