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________________ बारहभावना : एक अनुशीलन एकत्व न केवल आत्मा का, अपितु प्रत्येक पदार्थ का सौन्दर्य है; पर के साथ सम्बन्ध (साथ) की चर्चा ही असत् है, विसंवाद पैदा करनेवाली है ।" एकत्व वस्तु की अखण्डता का सूचक है, कण-कण की स्वतंत्र सत्ता का सूचक है। साथ या साथी की कल्पना वस्तु की अखण्डता को चुनौती है, स्वतंत्र सत्ता को चुनौती है। ६५ एकत्व की प्रतीति में स्वाधीनता का स्वाभिमान जागृत होता है, स्वावलम्बन की भावना प्रबल होती है और वृत्ति का सहज स्वभावसन्मुख ढुलान होता है। एकत्वभावना के चिन्तन का वास्तविक सुफल यही है। ध्यान रहे एकत्व वस्तु का त्रैकालिक स्वभाव है और तत्सम्बन्धी चिन्तन, मनन, घोलन एवं तद्रूप परिणमन एकत्वभावना है। अखण्ड स्वाधीनता की सूचक और स्वावलम्बन की प्रेरक एकत्वभावना के चिन्तन से जो उल्लास और आनन्दातिरेक जीवन में प्रस्फुटित होना चाहिए, दिखाई देना चाहिए; वह आज देखने को नहीं मिलता, आज के आदमी को तो अकेलापन काटने को दौड़ता है। सामान्यजनों की बात तो जाने दीजिये, आज त्यागियों को भी साथ चाहिए । सांसारिक कार्यों में तो साथ चाहिए ही; पर गजब तो यह है कि इसे साधना में भी साथ चाहिए, आराधना में भी साथ चाहिए, ज्ञान में भी साथ चाहिए, ध्यान में भी साथ चाहिए । नरक - स्वर्ग की बात भी जाने दीजिये; मोक्ष भी अकेले जाना स्वीकार नहीं है, वहाँ भी साथ चाहिए। अब तो ध्यान भी एकान्त में न होकर समूहों में होता है । इसी को लक्ष में रखकर मैंने बहुत पहले लिखा था - "ले दौलत प्राणप्रिया को तुम मुक्ति न जाने पाओगे । यदि एकाकी चल पड़े नहीं तो यहीं खड़े रह जाओगे ॥" १. समयसार, गाथा ३
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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