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________________ एकत्वभावना आनन्द का रसकन्द सागर शान्ति का निज आतमा । सब द्रव्य जड़ पर ज्ञान का घनपिण्ड केवल आतमा ॥ जीवन-मरण सख-दुख सभी भोगे अकेला आतमा । शिव-स्वर्ग नर्क-निगोद में जावे अकेला आतमा ॥१॥ निज भगवान आत्मा आनन्द का रसकन्द, ज्ञान का घनपिण्ड एवं शान्ति का सागर है। एक आत्मा को छोड़कर शेष सभी द्रव्य जड़ हैं। इस संसार में यह आत्मा जीवन-मरण और सुख-दुःख को अकेले ही भोगता है और नरक, निगोद, स्वर्ग या मोक्ष में भी अकेला ही जाता है। इस सत्य से अनभिज्ञ ही रहते सदा बहिरातमा । पहिचानते निजतत्त्व जो वे ही विवेकी आतमा ॥ निज आतमा को जानकर निज में जमे जो आतमा । वे भव्यजन बन जायेंगे पर्याय में परमातमा ॥२॥ बहिरात्मा अज्ञानीजीव उक्त तथ्य से अपरिचित ही रहते हैं । जो आत्मा उक्त सत्य या निजात्मतत्त्व को पहिचानते हैं, वे ही विवेकी ज्ञानी हैं। जो जीव निजात्मतत्त्व को पहिचानकर, जानकर निज में ही जम जाते हैं, रम जाते हैं; वे भव्यजीव पर्याय में भी परमात्मा बन जाते हैं।
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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