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________________ बारह भावना : एक अनुशीलन भूलकर जमीन-आसमान एक कर रहा है; उनमें सुख है भी या नहीं, उनके मिल जाने पर सुख प्राप्त होगा भी या नहीं? ४९ कहीं ऐसा न हो कि सम्पूर्ण जीवन उनके जुटाने में ही बीत जावे और वे जुट ही न पावें; क्योंकि इन संयोगों का जुटाना मेंढकों के तोलने जैसा दुष्कर कार्य है; तराजू पर एक रखो तो दो उछलकर नीचे कूद पड़ते हैं। जबतक एक संयोग जुटता है, तबतक दूसरा बिखर जाता है। जब दाँत होते हैं, तब चने नहीं मिलते हैं; जब चने मिलते हैं, तबतक दाँत गिर चुके होते हैं। जिनमें पत्थर पचाने की ताकत है; उन्हें घी-दूध नहीं मिलता, रूखी रोटियाँ खानी पड़ती हैं और जिन्हें सब-कुछ उपलब्ध है; उनका घी, शक्कर, नमक, तेल सब बन्द है; मूँग की दाल के पानी पर जीवन चलता है। वे चाहें तो घी-दूध में दिनभर डूबे रह सकते हैं, पर उनके सामने ही अतिथि माल उड़ाते हैं और वे फीकी चाय पीते देखते रहते हैं । कदाचित् पुण्ययोग से सब संयोग जुट भी जावें तो भी क्या सुख प्राप्त हो जावेगा ? - - इस पर आप कह सकते हैं कि इसका पता तो तभी चलेगा, जब सभी अनुकूल संयोग जुट जावेंगे ? नहीं, भाई ! इस प्रतीक्षा में समय गवाँना समझदारी नहीं है । इसप्रकार के संयोग आज जिन्हें उपलब्ध हैं, उन्हें ही देखकर सही निर्णय पर पहुँच जाना चाहिए। यह सर्वविदित तथ्य है कि लौकिक दृष्टि से जो व्यक्ति सर्वप्रकार से सम्पन्न हैं, उन्हें आज बिना गोली खाए नींद नहीं आती। हमें उन चक्रवर्तियों के अनुभव से भी लाभ उठाना चाहिए, जो छह खण्ड पृथ्वी के अधिपति होकर भी सब कुछ छोड़कर नग्न दिगम्बर हो गये थे । हमें वैराग्यभावना की निम्नांकित पंक्तियों पर ध्यान देना चाहिए - "मैं चक्री पद पाय निरंतर भोगे भोग घनेरे । तो भी तनक भये नहिं पूरन भोग मनोरथ मेरे ॥
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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