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________________ संसारभावना : एक अनुशीलन संसार है पर्याय में, निज आतमा ध्रुवधाम है। संसार संकटमय परन्तु आतमा सुखधाम है॥ सुखधाम से जो विमुख वह पर्याय ही संसार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥ "अपनी-अपनी सुनिश्चित भवितव्यतानुसार प्रतिसमय होनेवाले संयोगों के वियोग एवं पर्यायों के परिणमन को रोकने या स्वेच्छानुसार परिणमाने में कोई भी समर्थ नहीं है; क्योंकि सभी संयोग और पर्यायें अनित्य हैं, अशरण हैं।" - यह बात अनित्य और अशरणभावना के अनुशीलन से अत्यन्त स्पष्ट हो जाने पर भी वस्तु के सम्यक् स्वरूप से अपरिचित अज्ञानी को अज्ञानवश तथा सम्यकज्ञानी को भी कदाचित् रागवश इसप्रकार की विकल्पतरंगें उत्पन्न हो सकती हैं या होने लगती हैं कि भले ही संयोगों को स्थाई रूप प्रदान न किया जा सके; पर जबतक वे हैं, तबतक तो उनसे सुख प्राप्त होगा ही तथा जो नये संयोग प्राप्त होंगे, उनमें भी कुछ सुखकर हो ही सकते हैं। ___ - इसप्रकार की कल्पनाओं में उलझे रहने से उनका उपयोग संयोगों पर से हटता नहीं है, हटकर स्वभावसन्मुख होता नहीं है। ___ - इस स्थिति से उभरने के लिए की जानेवाली चिन्तन-प्रक्रिया का नाम संसारभावना है। संसारभावना में यह चिन्तन किया जाता है कि संयोगों में सुख नहीं है, संयोगों में सुख की कल्पना ही दुःख का मूल है। "दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णावश धनवान । कहुँ न सुख संसार में, सब जग देख्यो छान ॥" १. कविवर भूधरदास कृत बारह भावना
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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