SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहभावना : एक अनुशीलन ३९ वस्तु की इस स्वभावगत विशेषता का चित्रण एवं पर्यायों के स्वतंत्र क्रमनियमित परिणमन का चिन्तन ही अशरणभावना का मूल है। निमित्तों की अकिंचित्करता का सशक्त दिग्दर्शन ही अशरणभावना का आधार है। कोई बचा नहीं सकता' का अर्थ और क्या हो सकता है ? __ अनित्यभावना का केन्द्रबिन्दु है-'मरना सबको एक दिन, अपनीअपनी बार' और अशरणभावना कहती है कि - 'मरतें न बचावे कोई'-यही इन दोनों में मूलभूत अन्तर है। यद्यपि अनित्य और अशरणभावना सम्बन्धी उपलब्ध चिन्तन में देह के वियोगरूप मरण की ही चर्चा अधिक है; तथापि इनकी विषयवस्तु मृत्यु की अनिवार्यता तक ही सीमित नहीं है, अपितु उनका विस्तार असीम है; क्योंकि उनकी सीमा में सभी प्रकार के संयोगों तथा पर्यायों की अस्थिरता एवं अशरणता आ जाती है। मृत्यु सम्बन्धी अधिक चर्चा का हेतु जगतजन की मृत्यु के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता ही है। जगतजन मृत्यु के प्रति जितने संवेदनशील देखे जाते हैं, उतने किसी अन्य परिवर्तन के प्रति नहीं। ___ संवेदनशील बिन्दुओं को स्पर्श कर आचार्यदेव हमें जागृत करना चाहते हैं। मर्मस्थल पर की गई चोट निष्फल नहीं जाती। यही कारण है कि करुणासागर सन्त मृत्यु की अनिवार्यता एवं अशरणता सम्बन्धी मर्म-भेदी सत्य को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत कर कल्पनालोक में विचरने की वृत्ति को झकझोर कर तोड़ देना चाहते हैं। प्रयत्न करके देखें, शायद बच जायें, कोई बचा लेइसप्रकार की संशयात्मक वृत्ति को या इसीप्रकार के रागात्मक विकल्पों को जड़मूल से उखाड़ फेंकने की चिन्तनात्मक वृत्ति ही अशरणभावना है। अनित्य या अशरण भावना के सन्दर्भ में मृत्यु की अनिवार्यता और अशरणता की चर्चा समस्त संयोगों और पर्यायों के वियोग की अनिवार्यता एवं अशरणता के प्रतिनिधि के रूप में ही समझना चाहिए। अशरणभावना सम्बन्धी उक्त विश्लेषण के सन्दर्भ में एक प्रश्न यह भी प्रस्तुत किया जा सकता है कि अशरणभावना में अशरण ही नहीं,शरण भी बताये गये हैं; अत: यह कहना कि 'कोई शरण नहीं है' - क्या अर्थ रखता है ?
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy