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________________ बारहभावना : एक अनुशीलन की सुरक्षा के विकल्प में प्राणी क्या-क्या नहीं करते? अनेक प्रकार की औषधियों का सेवन करते हैं, कुदेवों की आराधना करते हैं, मंत्रों की साधना करते हैं, तंत्रों का प्रयोग करते हैं, सुद्दढ़ गढ़ बनवाते हैं, चिकित्सकों की शरण में जाते हैं, मांत्रिकों-तांत्रिकों के चक्कर काटते हैं, चतुरंगी सेना तैयार करवाते हैं; पर जब काल आ जाता है तो ये सब-कुछ काम नहीं आते। अन्ततोगत्वा इस नश्वर देह को छोड़ना ही पड़ता है। देह का वियोग ही मरण है, वह अनिवार्य है; क्योंकि कोई शरण नहीं है। बस, यही अशरण है; इसका चिन्तन ही मुख्यतः अशरण भावना है। जैसाकि निम्नांकित छन्दों से स्पष्ट है - "दल-बल देई-देवता, मात-पिता परिवार । मरती बिरियाँ जीव को, कोई न राखनहार ॥ इस जीव को मरणकाल आ जाने पर सेना की शक्ति, देवी-देवता, मातापिता और परिवारजन कोई भी नहीं बचा सकता। सुर-असुर खगाधिप जेते, मग ज्यों हरिकाल दले ते । मणि-मंत्र-तंत्र बहु होई, मरते न बचावै कोई ॥ जिसप्रकार शेर मृगों को निर्दयतापूर्वक मसल डालता है; उसीप्रकार देवता, असुर एवं विद्याधर आदि जितने भी शक्तिशाली जीव हैं, वे सभी काल (यमराज) द्वारा मसल दिये जाते हैं । यद्यपि लोक में मणि, मंत्र-तंत्र बहुत होते हैं; पर मरते समय कोई भी नहीं बचा पाता है।" बारह भावना सम्बन्धी उक्त छन्दों में मुख्यरूप से यही भाव स्पष्ट किया गया है। इसी बात को निम्नांकित छन्द में और भी अधिक स्पष्ट किया गया है - "कालसिंह ने मृगचेतन को घेरा भववन में। नहीं बचावनहारा कोई यों समझों मन में । १. कविवर भूधरदास कृत बारह भावना २. पण्डित दौलतराम कृत छहढाला; पंचम ढाल, छन्द ४
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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