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________________ १७५ बारहभावना : एक अनुशीलन ब्र. पण्डित श्री.जगन्मोहनलालजी शास्त्री, कटनी (म.प्र.) डॉ. भारिल्लजी की यह कृति भावपूर्ण भावनाओं को उभारनेवाली है। भावनाओं के अनुशीलन में जो उनका गंभीर चिन्तन व्यक्त हुआ है, वह सामायिक आदि के अवसर पर बढ़िया अवलम्बन है। ब्र.विदुषी गजाबेन शहा, बाहुबली, कुंभोज (महाराष्ट्र) प्रत्येक आगमाभ्यासी को इसका चिन्तन-मनन करना चाहिए। जीवन में आनेवाली प्रतिकूल परिस्थितियों में यह पुस्तक दीपस्तम्भ का कार्य करेगी। ऐसा विश्वास है। इसे घर-घर पहुँचाया जाना चाहिए। ब्र. हेमचन्दजी जैन 'हेम' इंजीनियर, पिपलानी, भोपाल (म.प्र.) ___ डॉ. भारिल्लजी द्वारा आध्यात्मिक दृष्टिकोण से रची गई बारह भावनाएँ भाने लायक भजनीय हैं। यह अनमोल कृति शारीरिक वेदनादि के क्षणों में उपयोग को भेदज्ञान के चिन्तवन में रमाये रखने हेतु अनुपम है,जो आर्तध्यानरौद्रध्यान से बचाए रखती है एवं धर्मध्यान में चित्त को स्थिर कराने में निमित्त होती है। सिद्धान्ताचार्य पण्डित फूलचन्दजी शास्त्री, वाराणसी (उ.प्र.) __ डॉ. भारिल्ल सुलझे हुए विचारों के विद्वान् हैं। उनका तत्त्वज्ञान संबंधी अध्ययन तलस्पर्शी है। साथ में वे अच्छे कवि भी हैं। उनकी यह कृति वैराग्योत्पादक है तथा 'राजा राणा छत्रपति' बारहभावना के समान यह भी पाठक के हृदय को स्पर्श करनेवाली है। हम हृदय से उनकी इस रचना का स्वागत करते हैं। प्रतिष्ठाचार्य पण्डित श्री नाथूलालजी शास्त्री, इन्दौर (म.प्र.) _ 'बारहभावना : एक अनुशीलन' ग्रन्थ का अभी तक उपलब्ध बारहभावना सम्बन्धी रचनाओं में विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक भावना के भाव को विविध दृष्टिकोणों से स्पष्ट करने के लिए अन्य ग्रन्थों के प्रमाण प्रस्तुत कृति में पढ़ने को मिलते हैं। मानसिक शान्ति और आत्महित की दृष्टि से यह रचना अत्यन्त उपयोगी और चिन्तन-मनन करने योग्य है। पद्यमय बारहभावनाएँ भी भावपूर्ण रचना है। डॉ. भारिल्लजी की भाषा-शैली सरल एवं सुबोध है।
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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