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________________ १६४ धर्मभावना : एक अनुशीलन में धर्म के स्वरूप को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। कविवर भूधरदास ने धर्म की महिमा बड़े ही मार्मिक ढंग से व्यक्त की है, जो इसप्रकार है - "जाँचे सुरतरु देय सुख, चिन्तन चिन्ता रैन। बिन जाँचे बिन चिन्तये, धर्म सकल सुख दैन॥ कल्पवृक्ष संकल्प करने पर अथवा माँगने पर तथा चिन्तामणि रत्न चिन्तवन करने पर फल देता है; किन्तु धर्म से बिना माँगे व बिना चिन्तवन के ही उत्तम फल की प्राप्ति होती है।" ___ कहाँ एक ओर दीनतापूर्वक माँगने पर तुच्छ भोगसामग्री प्रदान करनेवाला कल्पवृक्ष और कहाँ बिना माँगे ही अद्भुत अतीन्द्रिय आनन्द देनेवाला धर्म? इसीप्रकार कहाँ चिन्ता करने पर चिन्तित मनोरथ को पूर्ण करनेवाला चिन्तामणि रत्न और कहाँ बिना चिन्तवन के ही अचिंत्य आनन्द देनेवाला महान धर्म? ___ भोला जगत भले ही चिन्तामणि रत्ल और कल्पवृक्ष के गीत गाता हो, उनकी तुलना धर्म से करता हो; पर धर्म की तुलना में वे कहाँ ठहरते हैं? चिन्तामणि रत्न और कल्पवृक्ष दोनों ही अनन्तसुख-शान्ति देनेवाले पावन धर्म की समानता नहीं कर सकते। इसप्रकार धर्मभावना में रत्नत्रय धर्म की अचिन्त्य महिमा बताकर जीवन को धर्ममय बना लेने की पावन प्रेरणा दी जाती है। __यहाँ एक प्रश्न संभव है कि कल्पवृक्षों से दीनतापूर्वक नहीं माँगना पड़ता, अतः दीनतापूर्वक माँगने की बात क्यों कही जा रही है? ___ भाई! दीनता बिना माँगना संभव ही नहीं है। माँगने में दीनता आती ही है। माँगना स्वयं दीनता है, वह दीनतास्वरूप ही है। माँगने को तो मौत के समान कहा गया है - "रहिमन वे नर मर गये, जो नर माँगन जाय। उनसे पहले वे मेरे, जिन मुख निकसत नाय॥ १. कविवर भूधरदासजी कृत बारह भावना
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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