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________________ अनुप्रेक्षा : एक अनुशीलन मैं ध्येय हूँ श्रद्धेय हूँ मैं ज्ञेय हूँ मैं ज्ञान हूँ। बस एक ज्ञायकभाव हूँ मैं मैं स्वयं भगवान हूँ॥ इस सत्य को पहिचानना ही भावना का सार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥ अनुप्रेक्षा जिनागम का सर्वाधिक चर्चित विषय है। प्रथमानुयोग के तो प्रत्येक ग्रन्थ में इनका प्रसंगानुसार वर्णन होता ही है। किन्तु इस विषय पर स्वतंत्ररूप से भी अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं। आचार्य कुन्दकुन्द जैसे दिग्गज आचार्यों ने भी इस विषय पर स्वतंत्ररूप से लिखना आवश्यक समझा। प्रथमानुयोग और स्वतंत्र ग्रन्थों के अतिरिक्त भी सम्पूर्ण जिनागम में यथास्थान इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। __ जिनागम में प्राप्त सम्पूर्ण अनुप्रेक्षा साहित्य को एकत्रित किया जाय तो एक विशाल सन्दर्भ-ग्रन्थ तैयार हो सकता है। __ हमारे इस अनुशीलन का उद्देश्य अनुप्रेक्षा-साहित्य का परिशीलन करना नहीं है और न उनका सन्दर्भ-ग्रन्थ तैयार करना ही है। हम तो जिनागम के आलोक में अनुप्रेक्षाओं के स्वरूप का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करना चाहते हैं, आध्यात्मिक जीवन में इनके चिन्तन की आवश्यकता एवं उपयोगिता का तर्कसंगत विश्लेषण करना चाहते हैं। अनुप्रेक्षा साहित्य की प्रतिपादनशैली का मूल दृष्टिकोण एवं मूल केन्द्रबिन्दु का अनुसन्धान ही हमारा अभीष्ट है। ____ बारह प्रकार की होने से अनुप्रेक्षाओं को अधिकांशतः 'बारह भावना' के नाम से ही जाना जाता है। लोक में सर्वाधिक प्रचलित नाम 'बारह भावना' ही है, अनुप्रेक्षा नाम को विद्वत्समाज के अतिरिक्त बहुत कम लोग जानते हैं।
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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