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________________ १५४ बोधिदुर्लभभावना : एक अनुशीलन पर्यायरूप होना कठिन होता है । कदाचित् इसकी प्राप्ति पुनः हो भी जावे तो भी उत्तम देश, उत्तम कुल, स्वस्थ इन्द्रियाँ और स्वस्थ शरीर की प्राप्ति उत्तरोत्तर अत्यन्त दुर्लभ समझना चाहिए। इन सबके मिल जाने पर भी यदि सच्चे धर्म की प्राप्ति न हुई तो जिसप्रकार दृष्टि के बिना मुख व्यर्थ है; उसीप्रकार सद्धर्म बिना मनुष्य जन्म का प्राप्त होना व्यर्थ है । इसप्रकार अति कठिनता से प्राप्त धर्म को पाकर भी विषयसुख में रंजायमान होना भस्म के लिए चन्दन जला देने के समान निष्फल है। कदाचित् विषयसुख से विरक्त हुआ तो भी तप की भावना, धर्म की प्रभावना और सहज समाधि का, सुख से मरणरूप समाधि का प्राप्त होना अतिदुर्लभ है। इसके होने पर ही बोधिलाभ सफल है - ऐसा विचार करना ही बोधिदुर्लभभावना है। " त्रसपर्याय की दुर्लभता से लेकर रत्नत्रय बोधि की दुर्लभता तक की अनेक दुर्लभताओं में मनुष्यपर्याय की दुर्लभता एक बीच का बिन्दु है । वह एक ऐसा बिन्दु है, जहाँ तक का अतिकठिन रास्ता जैसे भी हो, पर हम सबने पार कर लिया है। उससे भी आगे आर्य देश, उत्तम कुल, वीतरागी धर्म और उसका श्रवण भी हमें सहज उपलब्ध हो गया है। इस महान उपलब्धि की सार्थकता सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्ररूप बोधि की उपलब्धि में ही है। यदि इस महादुर्लभ मानव जीवन को पाकर भी हमने बोधि की प्राप्ति नहीं की तो इसका पाना, न पाना बराबर ही समझना चाहिए। यही कारण है कि आचार्य पूज्यपाद के उक्त कथन में मनुष्यभव की दुलर्भता की बात दो बार कही गई है; यह भी चेतावनी दी गई है कि यदि यह मनुष्यभव विषय- कषाय के सेवन में यों ही चला गया तो फिर दुबारा मिलना उससे भी अतिकठिन है । अतः एक के बाद एक इतनी कठिनाइयों से प्राप्त इस अवसर को यों ही गवाँ देना कहाँ की समझदारी है? जबतक विचाररहित असैनी पर्यायों में था, तबतक तो बुद्धिपूर्वक पुरुषार्थ का कोई अवसर ही न था; फिर भी सहज १. सर्वार्थसिद्धि; अध्याय ९, सूत्र ७ की टीका
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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