SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ · बारहभावना : एक अनुशीलन १२३ इसप्रकार सम्पूर्ण जगत को स्व और पर में विभाजित करके पर से विमुख होकर स्वसन्मुख होना ही भेदविज्ञान है, आत्मानुभूति है, संवर है, संवरभावना है, संवरभावना का फल है। श्रद्धागुण की जो निर्मलपर्याय उक्त 'स्व' में एकत्व स्थापित करती है, अहं स्थापित करती है, ममत्व स्थापित करती है, अहंकार करती है, ममकार करती है, एकाकार होती है; उसी निर्मलपर्याय का नाम सम्यग्दर्शन है। इसीप्रकार ज्ञानगुण की जो निर्मलपर्याय उक्त 'स्व' को निज जानती है, वह सम्यग्ज्ञान है। उसी का ध्यान करनेवाली, उसी में लीन हो जानेवाली, जम जानेवाली, रम जानेवाली, समा जानेवाली चारित्रगुण की निर्मलपर्याय सम्यक्चारित्र है। ___ - यही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र मुक्ति का मार्ग है, शुभाशुभभावरूप आस्रवभावों के निरोधरूप होने से संवर है, संवरभावना है। अतीन्द्रिय आनन्दमय होने से यही रत्नत्रय संवरभावना का सुमधुर फल भी है। धर्म का आरंभ संवर से ही होता है। संवर स्वयं प्रकट पर्यायरूप धर्म है। पर्याय के बिन्दु का स्वभाव के सिन्धु में समा जाना ही वास्तविक धर्म है। बिन्दु की सुरक्षा भी सिन्धु में समा जाने में ही है; क्योंकि सिन्धु से बिछुड़ने पर बिन्दु का विनाश निश्चित ही है। आनन्द की जननी संवरभावना ज्ञान की गंगा है, सुबुद्धिरूपी छैनी है, मुक्ति की नसैनी है। ध्यान रहे गंगाजल को भी तबतक स्थिरता प्राप्त नहीं होती; जबतक कि वह सागर में न समा जावे। संवरभावना संबंधी चिन्तनधारा को भी तबतक स्थिरता प्राप्त नहीं होती, जबतक वह ज्ञानसागर आत्मा में न समा जावे। जिसप्रकार गंगा की जलधारा जब अपना अस्तित्व खोकर सागर में सम्पूर्णतः समर्पित हो जाती है, समा जाती है, उससे एकमेक हे जाती है; तब वह स्वयं भी सागर हो जाती है। उसीप्रकार संवर संबंधी चिन्तनधारा (संवरानुप्रेक्षा - संवरभावना) भी जब अपना अस्तित्व खोकर ज्ञानसागर (ज्ञानानन्दस्वभावी त्रिकाली ध्रुव आत्मा) में सम्पूर्णतः समर्पित हो जाती है,
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy