SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राप्तकर नरदेह उत्तम कुल सहित यह आतमा । सम्यक्त्व लह मुक्ति लहे अर अखय आनन्द परिणमे ॥३४॥ हजार अठ लक्षण सहित चौंतीस अतिशय युक्त जिन । विहरें जगत में लोकहित प्रतिमा उसे थावर कहें ॥ ३५ ॥ द्वादश तपों से युक्त क्षयकर कर्म को विधिपूर्वक । तज देह जो व्युत्सर्ग युत, निर्वाण पावें वे श्रमण || ३६ || अद्भुत सत्य का आनन्द मात्र बातों से आनेवाला नहीं / है, अन्तर में परमसत्य के साक्षात्कार से ही अतीन्द्रिय आनन्द का दरिया उमड़ेगा । आत्मा ही है शरण, पृष्ठ- ८७ d - ( १४ )
SR No.009443
Book TitleAshtapahud Padyanuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2002
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy