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________________ ८० दशकरण चर्चा 3D KailashData Annanji Adhyatmik Duskaran Book (43) भावदीपिका चूलिका अधिकार अब यहाँ उदयकरण के विषय को समझने के लिए पण्डित श्री दीपचन्दजी कासलीवाल कृत भावदीपिका शास्त्र के चूलिका अधिकार का उदयकरण का पूर्ण भाग दिया है। कर्म की उदयकरण अवस्था कहते हैं - “जहाँ कर्म अपनी स्थिति पूरी कर, फल देकर खिरने के सन्मुख हो, उसे उदय कहते हैं। वह उदय भी चार प्रकार का है - प्रदेश उदय, प्रकृति उदय, स्थिति उदय और अनुभाग उदय । वहाँ भी जीव के परिणामों का निमित्त पाकर फल देकर या बिना फल दिये ही कर्म परमाणुओं का खिर जाना, उसे प्रदेश उदय कहते हैं। मूल से कर्म प्रकृतियों का खिर जाना, उसे प्रकृति उदय जानना । स्थिति का क्षीण हो जाना, उसे स्थिति उदय कहते हैं। जघन्य, मध्यम, उत्कृष्टरूप अपना-अपना रस देकर खिर जाना, उसे अनुभाग उदय जानना । एक-एक समय में एक-एक निषेक अपना-अपना फल देकर उदय को प्राप्त होता है और फल देकर खिर जाता है, उसी को सविपाक निर्जरा कहते हैं। जो जीव सम्यक्त्व-चारित्रादि विशुद्धभावों रूप परिणमे, वहाँ एकएक समय में असंख्यात असंख्यात निषेकों का उदय आकर, बिना फल दिये ही प्रदेश उदय होकर खिरते हैं, उसको अविपाक निर्जरा कहते हैं।
SR No.009441
Book TitleAdhyatmik Daskaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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