SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट १ __ और अब खाड़ी के देशों में भी डॉ. भारिल्ल अमरीकी और यूरोप के देशों में तो धर्मप्रचारार्थ विगत आठ वर्ष से प्रतिवर्ष दो माह के लिए जा ही रहे हैं; इस वर्ष भी ४ जून, १९९२ ई. को जा रहे हैं, जिसका विस्तृत कार्यक्रम आगामी अंकों में प्रकाशित किया जायेगा । ___इस वर्ष वे खाड़ी देशों (गल्फ कन्ट्रीज) की धर्मप्रचारार्थ यात्रा करके आये हैं। जैन सोशल ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष श्री सी. एन. सिंघवी एवं दुबई, सरजाह एवं आबूधबी की जैन समाज के विशेष अनुरोध पर यह कार्यक्रम सुनिश्चित किया गया था । जैन सोशल ग्रुप की भारत के साथ-साथ अमरीकी और यूरोप के देशों में भी अनेक शाखायें हैं। दुवई में भी एक शाखा है, जिसने चर्च के विशाल हॉल में २९ फरवरी, १९९२ को शाकाहार पर प्रवचन रखा था। इसमें २०० से अधिक लोग उपस्थित थे। सभी ने बड़ी ही उत्सुकता एवं शान्ति से व्याख्यान सुना, उसके बाद सम्बन्धित विषय पर प्रश्नोत्तर भी हुए । __ २२ फरवरी, १९९२ से २ मार्च, १९९२ तक की यह १० दिवसीय अत्यंत सफल यात्रा में एक-एक घण्टे के छह व्याख्यान एवं इतने ही घण्टों की चर्चा दुबई में हुई। एक व्याख्यान आबूधवी में एवं एक व्याख्यान सरजाह में हुआ । वहाँ वे नितीशभाई के घर ठहरे थे। वे एक अच्छे चार्टर्ड अकाउण्टेण्ट हैं। उन्होंने ही इस यात्रा की सम्पूर्ण व्यवस्था की थी। एक छुट्टी के दिन उन्होंने अपने घर में ही दिनभर का कार्यक्रम रखा था। सभी श्रोताओं के भोजनादि की व्यवस्था भी की थी। दिनभर में तीन-तीन घंटे के दो सत्र चलाये, जिसमें प्रवचनों के अलावा प्रश्नोत्तर व खुली चर्चा भी हुई । प्रवचनों के विषय क्रमबद्धपर्याय, आत्मा और परमात्मा, आत्मानुभव आदि ही थे। प्रतिदिन के कार्यक्रमों में ३० से ५० व्यक्तियों तक उपस्थिति रहती थी। इस अवसर पर वहाँ बम्बई के प्रसिद्ध समाजसेवी दीपचंदजी गार्डी भी पधारे थे। सबकुछ मिलाकर कार्यक्रम बहुत प्रभावक रहे। सभी लोगों ने प्रति तीन माह में एकबार पधारने का विशेष अनुरोध किया। दुबई में नवीनभाई शाह धार्मिक कक्षाओं और गोष्ठियों का संचालन करते हैं। इसकारण लोगों में धार्मिक वातावरण बना हुआ है। डॉ. भारिल्ल के जाने से वहाँ आध्यात्मिक रुचि भी जागृति हुई है । - वीतराग-विज्ञान, अप्रैल १९९२, पृष्ठ-२ से साभार
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy