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________________ आत्मा ही है शरण 212 निर्माणाधीन है । ये प्रवचन वीसा ओसवाल जैन समाज ने ही आयोजित किये थे और इनमें मुमुक्षु भाइयों के अतिरिक्त उनमें से भी सैंकड़ों लोग आये थे । ___ भगवानजीभाई के घर पर प्रातः भी चर्चा व प्रवचन के कार्यक्रम रहे थे। इसप्रकार अमेरिका व यूरोप में अनेक प्रकार से धर्मप्रभावना करते हुए ३१ जुलाई, १९९१ को जयपुर आ गये; क्योंकि यहाँ ४ अगस्त, १९९१ से आध्यात्मिक शिक्षण-शिविर आरंभ था । - इस वर्ष शाकाहार के अतिरिक्त जिस विषय का प्रतिपादन लगभग सर्वत्र ही हुआ, वह मूलतः इसप्रकार है : विश्व में जितने भी धर्म हैं, उनमें अधिकांश यह मानते हैं कि जगत में कोई एक ऐसी ईश्वरीय सत्ता है, जिसने इस जगत को बनाया है और वही इस जगत का नियंत्रण भी करती है । उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता । इस सन्दर्भ में जैन-दर्शन की मान्यता एकदम स्पष्ट है कि ऐसी कोई सत्ता इस जगत में नहीं है, जो इस जगत का नियंत्रण करती हो, जिसने इसे बनाया हो या जो इसका विनाश कर सकती हो । __ जैनदर्शन की यह एक ऐसी विशेषता है कि जो उसे विश्व के अन्य दर्शनों से अलग एवं स्वतंत्र दर्शन के रूप में स्थापित करती है । यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है कि जिन दर्शनों में ईश्वर को जगत का कर्ता-धर्ता-नियत्ता स्वीकार किया गया है, उनमें तो उसकी भक्ति विविध प्रकार से की जाती है और की भी जानी चाहिये; क्योंकि सबकुछ उसकी कृपा पर ही निर्भर है, वही दुष्टों को दण्ड देता है और सज्जनों की संभाल करता है; भक्तों को अनुकूलता प्रदान करता है और विरोधियों का निग्रह करता है; पर जिस दर्शन में ऐसे किसी भगवान की सत्ता स्वीकार नहीं की गई हो, उसमें भक्ति की क्या उपयोगिता हो सकती है ? फिर भी
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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