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________________ आत्मा ही है शरण हमारे प्रत्यक्ष उपकारी तो वे ज्ञानी गृहस्थ धर्मात्मा भी हो सकते हैं, जो अभी पंचपरमेष्ठी में शामिल नहीं हैं, वे भी पूज्य तो हैं ही, पर पंचपरमेष्ठी के समान पूज्य नहीं । अष्टद्रव्य से पूज्य तो पंचपरमेष्ठी ही हैं। उन्हीं को णमोकार महामंत्र में स्थान प्राप्त है, ज्ञानी गृहस्थ धर्मात्माओं को नहीं । 189 इस संदर्भ में एक बात और भी उल्लेखनीय है कि णमोकार महामंत्र की महिमा बतानेवाली गाथा में णमोकार मंत्र को सब पापों का नाश करनेवाला कहा गया है । वह गाथा मूलतः इसप्रकार है : "ऐसो पंच णमोयारो सव्व पावप्पणासणो । मंगलाण' च सव्वेसि पढ़मं होहि मंगलम् ॥ यह नमस्कार महामंत्र सब पापों का नाश करनेवाला और सब मंगलों में पहला मंगल है ।” इस गाथा के अर्थ समझने में भी भारी भूल होती है । सब पापों का नाश करने का अर्थ यह समझा जाता है कि भूतकाल में हमने जो भी पाप किए हैं, इस महामंत्र के उच्चारण मात्र से उन सबका नाश बिना फल दिए ही हो जाता है । यदि ऐसा है तो फिर हम सभी लोग प्रतिदिन इसे बोलते ही हैं, अतः हमारे पुराने पापों का नाश हो जाना चाहिए था, पर ऐसा तो दिखाई नहीं देता है; क्योकि प्रतिदिन णमोकार महामंत्र बोलने वालों के भी पाप का उदय देखा जाता है, पाप के उदय में उन्हें अनेक प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ता है । यह सब हम प्रतिदिन देखते हैं, प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं । इससे बचने के लिए यदि यह कहा जाये कि हमें इस पर पक्का भरोसा नहीं है, विश्वास नहीं है; अतः हमारे पापों का नाश नहीं होता है । अरे भाई, न सही हमें विश्वास, पर क्या किसी को भी विश्वास नहीं है? लाखों लोग प्रतिदिन णमोकार महामंत्र बोलते हैं और लगभग सभी
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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